________________ रासायनिक तत्वों के चिन्ह आदि हैं। संघनित प्रतीकों का उदाहरण धार्मिक कृत्यों में और स्वप्न तथा मनोवैज्ञानिक विशेषताओं जन्य प्रक्रियाओं में मिलते हैं। ऐसे प्रतीक प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति या व्यवहार के स्थानापन्नों के संघनित रूप होते हैं और चेतन या अचेतन संवेगात्मक तनावों के मुक्त प्रसारण में सहायता देते हैं। व्यवहारिक जीवन में इन दोनों प्रकारों के प्रतीकों का मिश्रण मिलता है। कवियों के द्वारा प्रायः पारम्परिक अथवा वैयक्तिक प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। काव्य में सामाजिक सांस्कृतिक (पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक) प्राकृतिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रतीकों का उल्लेख मिलता है / (139) काव्य प्रतीकों का मूल स्त्रोत बिम्ब, पौराणिक आख्यान और लेखक का जीवन दर्शन होता है। प्रतीक रूढ़ बिम्ब होते हैं अत्यधिक प्रयोग में आने पर कुछ प्रतीक अपनी अर्थवत्ता खो देते हैं। बिम्ब में चित्रोपमता पायी जाती है, प्रतीक में सांकेतिक व्यंजना। लेविस नेसघन बिम्ब को प्रतीक का विरोधी माना है जबकि जार्ज ह्वेले ने काव्यानुभूति से संपृक्त बिम्ब को प्रतीक ही माना है ये दोनों मत एकांगी है। कविता में बिम्ब शायद ही कभी शुद्ध प्रतीकात्मक अवस्था में मिले, किंतु यह भी नहीं कहा जा सकता कि - सघन बिम्ब प्रतीक का विरोधी होता है। प्रतीक ही संभ्रांत होकर बिम्ब का स्वरूप धारण कर लेते है / 140) केदारनाथ सिंह ने माना है कि प्रत्येक प्रतीक अपने मूल में बिम्ब होता है और उस मौलिक रूप से क्रमशः विकसित होकर प्रतीक बन जाता है। बिम्ब और प्रतीक के अंतर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि बिम्ब के लिए ज्ञानेन्द्रिय के किसी भी स्तर पर मूर्त होना आवश्यक है। यानी बिम्ब मूर्त ही होता है। प्रतीक किसी वस्तु का चित्रांकन नहीं करता केवल संकेत द्वारा उसकी किसी विशेषता को ध्वनित करता है। अतः प्रतीक का ग्रहण संदर्भ से अलग और एकांत रूप में भी संभव है। किन्तु बिम्ब की प्रेषणीयता उसके पूरे संदर्भ के साथ होती है। (141) बिम्ब के लिए भावचित्र अनिवार्य शर्त है। प्रतीक किसी एक शब्द से व्यापक भाव को व्यक्त करता है जबकि बिम्ब में कवि दिये हुए शब्दों से ही अर्थ लेकर स्थिति का बोध कराता है। इस प्रकार प्रतीक एवं बिम्ब में घनिष्ठ संबंध होते हुए भी दोनों की स्थिति परस्पर स्वतंत्र है। प्रतीकों की बड़ी संख्या यदि भाव चित्रों [139]