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________________ ' के रूप में संभ्रांत नहीं हो पाती तो उनमें से अधिकांश प्रतीक कथानक रूढ़ि या अभिप्राय बन कर रह जाते हैं |(142) लैंगर ने प्रतीक के चार विधायी तत्व माने हैं जिसमें वस्तु और धारणा प्रतीक के तात्विक साधन हैं और आश्रय तथा आलंबन प्रतीक के भावना पक्ष से सम्बद्ध है। इनमें वे धारणा को सर्वाधिक महत्व देते हैं क्योंकि प्रतीक अपनी विषय वस्तु के प्रतिनिधि नहीं होते, बल्कि विषय-वस्तु की धारणा के वाहक होते हैं / (143) आचार्य शुक्ल के अनुसार - "प्रतीक विशिष्ट मनोविकार या भावना को अभिव्यक्त करता है। (144) मनोवैज्ञानिकों ने प्रतीक को अचेतन मन की दमित वासनाओं को मूलतः श्रृंगारिक माना है। युंग के अनुसार "प्रतीक कामवासना से सम्बद्ध होते हैं और सुविचारित नहीं होते, बल्कि सहज ज्ञान के रूप में प्रायः स्वप्नो में प्रकट होते हैं। सामूहिक चेतना से उत्पन्न प्रतीकों को युंग ने आद्य बिम्ब कहा है |(145) __ अस्तु निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कलात्मक प्रतीक, धर्म, दर्शन, विज्ञान आदि के प्रतीकों की तरह स्पष्ट और निश्चित नहीं होते। ये प्रायः कल्पनाजन्य होते हैं जबकि वैज्ञानिक प्रतीक पूर्णतः बौद्धिक होते हैं। कला प्रतीक अर्थ विस्तार की अधिक संभावना रखते हैं क्योंकि कलाकार और सहृदय दोनों उन्हें एक समान रूप में ग्रहण नहीं करते / कला-प्रतीकों में अनुभूति का तत्व अन्य सभी प्रतीक रूपों से अधिक होता है। इनका स्वरूप गत्यात्मक होता है, रूढ़ नहीं। सहृदय जब तक कलाकार की अनुभूति की गहराई तक नहीं पहुंचता तब तक वह उनका मूल आशय नहीं पकड़ पाता। (146) --00-- [140]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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