________________ बिम्ब और प्रतीक 'प्रतीक' शब्द अंग्रेजी के 'सिम्बल' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। मदन वात्स्यायन इसकी परम्परा ऋग्वेद से मानते है। "न सूखने वाले जल की उपमा वैदिक ऋषि ने जीभ के जल से दी थी। आग की लपटो की सींग घुमाते हुए पशु से, और एक दिन हास करने वाली उषा की व्याध स्त्री से।"(131) डॉ. नित्यानंद शर्मा ने 'प्रतीक' को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अप्रस्तुत, अप्रमेय, अगोचर अथवा अमूर्त का प्रतिनिधित्व करने वाले उस प्रस्तुत या गोचर वस्तु-विधान को प्रतीक कहते हैं जो देश काल एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण हमारे मन में अपने चिर साहचर्य के कारण किसी तीव्र भावबोध को जागृत करता है / (132) वस्तुतः देखा जाय तो जब काव्य में बिम्ब अपने प्रयोग नैरंतर्य के कारण रूढ़ हो जाते हैं, तब वे प्रतीक बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर महाप्राण निराला की कविता 'स्नेह निर्झर बह गया है' दृष्टव्य है : स्नेह निर्झर बह गया है, रेत ज्यों तन रह गया है। आम की यह डाल जो सूखी दिखी कह रही है अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी, नहीं जिसका अर्थ जीवन दह गया है / (133) उक्त गीत में आम की सूखी डाल और उसकी दशा के माध्यम से संवेद्य बिम्ब उपस्थित किया गया है। कवि द्वारा 'पिक' या 'शिखी' के प्रतीक से सुखात्मक अनुभूतियों के अभाव के रूप में प्रयुक्त हो जीवन दहने के प्रतीक को उभार कर वियोग दुख को स्पष्ट किया गया है। आज की कविता मूलतः संवेदना और इन्द्रिय बोध की भित्ति पर खड़ी है, जिसके कारण सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बिम्बों और प्रतीकों की योजना करनी पड़ी। रामदरस मिश्र ने लिखा है कि "कविता के ऊपरी आयोजन नई कविता वहन नहीं कर सकती। वह अपनी अंतर्लय बिम्बात्मकता नवप्रतीक योजना, नये विशेषणों के प्रयोग, नव उपमान संघटना में कविता के [137]