________________ सीता के प्रति राम के रति भाव को कवि ने एक आकर्षक नाद बिम्ब के माध्यम से प्रस्तुत किया है। कंकण किंकिणी और नूपुर की मादक ध्वनि के आगमन दिशा की ओर राम ने देखा तो सीता के मुखचन्द्र के लिए उनके नेत्र चकोर बन गये। यहाँ राम सीता विषयक रति के आश्रय हैं, सीता आलम्बन हैं। कंकन, किंकिनी, सीता का मुख शशि, रूप आदि उद्दीपन हैं। नेत्रों का अचंचल होना अनुभाव और लुभाने में अभिलाषा और हर्ष संचारी भाव है। इस प्रकार उक्त उदाहरण में रसांगों द्वारा संपूर्ण दृश्य का बिम्बांकन स्तुत्य है। यह आवश्यक नहीं है कि रस के चारों अंगों की उपस्थिति कविता में हो। यदि आलंबन गत नायक या नायिका का वर्णन सुंदर बिम्ब रूप में किया जाय तो अकेला विभाव भी रस की सिद्धि में सहायक हो सकता है। एजरा पाउण्ड ने बिम्ब की व्याख्या में भाव व विचार को प्रमुखता देते हुए लिखती है कि बिम्ब एक निश्चित समय में भावनात्मक एवं बौद्धिक विचारों को प्रकट करता है / (114) श्री कृष्ण चैतन्य के अनुसार 'काव्य में भाव गर्भित इमेज ही वैध माना जा सकता है / (115) विषादात्मक भाव बिम्ब की एक झलक प्रस्तुत है : तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो, उदास ज्यों किसी गुलाबी दुनियाँ में सूने खण्डहर के आस-पास मदभरी चाँदनी जगती हो - धर्मवीर भारती (116) गिरिजाकुमार माथुर ने धरती पर झुके सावन के बादलों का भावबिम्ब प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि उस समय फूल बाहें खुलजाती है और लाज का आँचल स्वतः ही हट जाता है : नहाकर वनस्पति हुई ऋतु मति सी नितम्बिनी धरा ज्यों कुँवरि रसवती सी नवोढ़ा नदी के नवल अंग खोले ... सजी दीप तन की मिलन आरती सी। 117) जिन क्रियाओं अथवा चेष्टाओं से किसी के हृदय में स्थित भाव 132]