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________________ का अनुभव (ज्ञान) हो उसे अनुभाव कहते हैं। अनुभाव अमूर्त भावों के व्यक्त मूर्त स्वरूप हैं। बिम्ब भी अमूर्त भाव का मूर्त स्वरूप होता है, इसलिए अनुभावों की प्रस्तुति बिम्बात्मक रूप में होती है, जैसे : चतुर सखी लखि कहा बुझाई। पहिरावहुँ जयमाल सुहाई। सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम विवस पहिराई न जाई।। (118) विवाह का दृश्य है। सीता जी राम के प्रेम में इतनी लीन हो गयी कि वे अपनी सुध-बुध भी भूल गयीं। वे जयमाल श्री राम को पहनाना चाहती हैं किन्तु पहना नहीं पाती। लज्जामिश्रित आनन्दातिरेक से उनके हाथों का संचालन रूक जाना भावबिम्ब का बहुत ही सुंदर उदाहरण है। संचारी भाव पानी के बुलबुले की भांति होते हैं, जो स्थायीभाव के सहायक एवं रस के उपकारक होते हैं। ये क्षणिक होते हैं तथा स्थायी भाव को पुष्ट कर लुप्त हो जाते हैं। इनका वर्णन भी काव्य में अन्य भावों की भाँति बिम्ब रूप में होता है। जैसे : कुंज, तुम्हारे कुसुमालय में प्राणनाथ आकर बहुधा। पान कराते थे सब ब्रज को वेणु बजाकर मधुर सुधा। तुम्हें विदित है सुनकर वह रव ज्यों शिखिनी घनरव, सुनकर कौन उपस्थित हो जाती थी उनके चरणों में सत्वर। (119) वियोग दशा में राधिका द्वारा श्रीकृष्ण को याद करना स्मृति बिम्ब है। श्रीकृष्ण की 'वेणु ध्वनि' में 'धनरव' तथा राधा के रूप में 'शिखिनी' का बिम्बाकंन मार्दव से परिपूर्ण एवम् प्रभावशाली है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि बिम्ब के मूल में भाव की ही प्रेरणा रहती है, जिसके कारण बिम्ब रसास्वादन का मुख्य आधार बन जाता है। जब तक सामाजिक के मानसिक धरातल पर बिम्ब निर्मित नहीं होता, तब तक रस चर्वणा असंभाव्य है। वस्तुगत बिम्बन होते ही सामाजिक साधारणीकरण की स्थिति में पहुँचकर आनन्दित हो उठता है। यही रसानन्द, आत्मानन्द का सहोदर कहा गया है / (120) --00-- | 133
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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