________________ औत्सुक्य) के विधान के द्वारा बिम्बित किया गया है | (108) इस प्रकार रस एक अमूर्त एवं सूक्ष्म तत्व है। इसकी अभिव्यक्ति के लिए मूर्त माध्यमों का सहारा लेना आवश्यक होता है। ये मूर्त अथवा स्थूल माध्यम ही बिम्ब के रूप में प्रस्तुत होते हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा प्रणीत 'रामायण' का जन्म रस दशा में ही हुआ। क्रौञ्च वध के पश्चात् क्रौञ्ची के विलाप से कवि के हृदय में करूणा की जो अजस्त्रधारा प्रवाहित हुई, उसका कारण मैथुन रत क्रौञ्ची का वह मूर्त दृश्य ही था जो व्याध द्वारा वधित (क्रौञ्च पक्षी) होने पर क्रौञ्ची के विलाप से काव्य बिम्ब के रूप में प्रस्फुटित हुयी। 'कवि अपनी हृदयगत वेदना, भावना एवम् अनुभूति को शब्द के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। पाठक जब काव्यास्वादन करता है तो कवि वर्णित वस्तु की स्पष्ट छवि या मानसिक चित्र उसके सामने प्रस्तुत हो जाता है। यह बिम्बानुभूति, यद्यपि आत्मा स्थानीय है, परन्तु स्थूल रूप से इन्द्रिय ग्राह्य है, इन्द्रियों के माध्यम से ही बिम्ब आत्मा विषयक होता है, रसिक जब बिम्बास्वादन करता है तब उसकी स्थिति तादात्म्य रूप हो जाती है। तदाकारता की प्राप्ति बिम्ब का महत्वपूर्ण फल है। 100) यों तो भारतीय काव्यशास्त्र या रस सिद्धांत में 'बिम्ब' शब्द का उल्लेख नहीं मिलता, किंतु रस से मण्डित कविता में बिम्बांकन की सहज प्रक्रिया देखी जा सकती है। रसांगों की कविता में उपस्थिति बिम्ब रूप में ही होती है। संस्कृत एवं हिन्दी के काव्यों में बिम्ब का विस्तृत संसार देखा जा सकता है। सूरदास ने कृष्ण के मथुरा जाते समय गोपिकाओं की विरह विगलित दशा का चित्रण किया है, जिसको रूपायित करने वाले बिम्बों की एक लघु प्रदर्शिनी अवलोकनीय है : रहीं जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ी। हरि के चलत देखियत ऐसी, मनहूँ चित्र लिखि काढ़ी।। सूखे वदन,स्त्रवति नैननि तें, जलधारा उर बाढ़ी।। कंधनि बांह धरे चितवति मनु द्रुमनि बेलि दव दाढ़ी।। नीरस करि छाड़यो, सुफलक सुत, जैसे दूध बिनु साढ़ी।। सूरदास अक्रूर कृपा तैं सही विपति तन गाढ़ी।। (110) 11301