________________ भावादि की व्यंजना होती है, वही काव्य भाषा का रूप बनाती है। (नया काव्य शास्त्र, भगीरथ मिश्र प्रथम संस्करण 1993 पेज 09) कालरिज ने बायोग्राफिया लिटरेरिया (पेज-32) में लिखा है कि "Good sense is the body of Poetic genius, Fancy its Drapery, Motion its life and Imagination, the soul, that is every where and in each : and forms all into one graceful and intelligent whole." अर्थात् अर्थ, शब्द, चमत्कार, लय और कल्पना यथोचित रूप में मिलकर जब एक परिपूर्ण रचना का निर्माण करते हैं, तब वह कविता या काव्य बनती है। आचार्य शुक्ल का यह बहुचर्चित कथन कि कविता का उद्देश्य (अर्थ) ग्रहण कराना मात्र नहीं होता, बिम्ब ग्रहण कराना हुआ करता है। कवि की अनुभूति भाषा में ही अभिव्यक्त होती है। बिम्ब कवि की अनुभूति से अभिन्न वस्तु है। अतः काव्य में बिम्बात्मकता के लिए आवश्यक है कि भाषा अनुभूति को ज्यों का त्यों प्रकाशित करने में समर्थ हो। कवि में अनुभूति हो और उसे अभिव्यक्त करने में समर्थ भाषा न हो तो काव्य के रूप में अनुभूति के व्यापीकरण में बाधा होगी। यों तो भाव व्यंजना भाषा की मोहताज नहीं हुआ करती, किंतु काव्य के क्षेत्र में 'भरे भौन में करत है नैनन ही सों बात' वाली बात सिद्ध नहीं होती क्योंकि बिम्बों का प्रकाशन शब्दों द्वारा ही होता है। भाव, अनुभूति कैसी भी हो, वह तो शब्द के सांचे में ही ढलती है। कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता होती है। जो भावों या दृश्यों को एक आकार अथवा बिम्ब रूप में प्रस्तुत करती है। भाषा में 1. व्यंजकता, 2.चमत्कारहीनता, 3. रूपकात्मकता, 4. ध्वन्यात्मकता (नाद सौंदर्य) का होना आवश्यक है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने व्यंजना शब्द-शक्ति के परिप्रेक्ष्य में लिखा है कि वाच्यार्थ और लक्ष्यार्थ दोनों के अतिरिक्त जिस किसी प्रयोजनीय अन्य अर्थ का बोध होता है, उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं, जिस शब्द से ऐसे अर्थ का बोध होता है उसे व्यंजक कहते हैं। जिस शब्द शक्ति से उस अर्थ का बोध होता है उसे 'व्यंजना' शब्द शक्ति कहते है।95) यों तो 'व्यंजक' का कोषगत अर्थ होता है, 'व्यक्त' या प्रकट करने वाला, सूचित करने वाला। व्यंग्यार्थ से काव्यगत भावों में क्षिप्रता आती है। व्यंग्य जितना ही गहरा होगा काव्य बिम्ब भी उतना ही प्रभावकारी 125]