________________ होती है। कविता में भावों का सृजन इसी कल्पना के द्वारा होता है। सामान्यतः क्रोचे ने ज्ञान को दो रूपों में विभाजित किया है-प्रथम सहजानुभूति और दूसरा प्रमेय ज्ञान। की उत्पत्ति बुद्धि से। ‘सहज ज्ञान बिम्बों की रचना करता है तो तर्क ज्ञान पदार्थ-बोध की। बुद्धि की सहायता से हम निर्णय करते हैं कि मनुष्य विचारशील प्राणी होता है, कल्पना हमारे मानस में ऐसे प्राणी का बिंब अंकित कर देती है। (63) क्रोचे के अनुसार सहजानुभूति आंतरिक प्रक्रिया है जिसमें वे रूप को सौदर्य का मूल आधार मानते है। इसी के द्वारा कलाकार भावनाओं तथा संवेगों के वेग को नियंत्रण में रखता है, और प्रभावों को बिम्बों में अभिव्यक्त कर स्वयं उससे मुक्त हो जाता है। (64) क्रोचे जिस सहजानुभूति को अभिव्यंजना माना है वह विशुद्ध आतंरिक है, उसका प्रकाशन उसकी दृष्टि में आवश्यक नहीं है। बिम्ब निर्माण की दृष्टि से सहजानुभूति पर्याप्त है क्योंकि जब कलाकार किसी शब्द को अपने मानस में ग्रहण कर लेता है अथवा जब किसी आकृति या मूर्ति की छवि आत्मसात् कर लेता है, तब वह मानसिक जगत में मूर्तित हो जाती है। सहजानुभूति में वस्तु के स्पष्ट प्रत्यक्षीकरण का ही महत्व है और बिम्ब में मूर्तिकरण का। इस प्रकार अभिव्यंजना और बिम्ब का यथोचित सम्बन्ध है। ___कुंतक की तुलना में क्रोचे का विचार फलक सीमित है। क्रोचे यदि मात्र 'सहजानुभूति' को काव्य में प्रतिष्ठित करते हैं तो कुंतक कथन की वक्रता को महत्व देते हैं। बिम्बांकन दोनों से होता है। यह बात अलग है कि कुंतक यदि 'विषय वस्तु को महत्व देते है तो क्रोचे मानव जीवन को। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'बिम्ब' आधुनिक पाश्चात्य जगत की सोच है। प्राचीन भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य के समीक्षा सिद्धांत में प्रत्यक्षतः तो नहीं अप्रत्यक्षतः प्रकारान्तर से बिम्बों की ओर संकेत मिलता है। बिम्ब को कविता की पूर्णता के रूप में माना गया है इसीलिए अंलकार, वक्रोक्ति, गुण, रस, रीति, औचित्य, ध्वनि, अनुकरण, औदात्य एवं अभिव्यंजनापरक सिद्धांतों में उसे आसानी से देखा जा सकता है। ये सिद्धांत अपने में सीमित हैं, किन्तु बिम्ब असीमित। --00-- 11151