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________________ . ... . ' दूसरी ओर अरस्तू ने चिंतन के क्षेत्र में इतिहास की तुलना में कविता को अधिक महत्व देते हुए लिखा है कि 'Poetry is a more Philosophical and a higher thing history' (58) यह तथ्य विचारणीय है कि 'काव्य का सार्वभौम, अमूर्त्त विचार नहीं है, वह संवेदना के द्वारा मूर्तिमंत किया जाता है, उसमें ऐन्द्रिय बिम्ब होते हैं, जो उस सार्वभौम सत्य को प्रकट करते हैं। अरस्तू ने इसीलिए कविता के लिए 'दार्शनिक पूर्ण' शब्दावली का प्रयोग किया है। यों अरस्तू ने कला को प्रकृति की अनुकृति माना है। उसके अनुसार ....... कवि या कलाकार प्रकृति की गोचर वस्तुओं का नहीं, वरन् प्रकृति की सृजन प्रक्रिया का अनुकरण करता है। (59) प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में कवि या कलाकार गोचर वस्तुओं का अनुकरण नहीं करता ? 'गोचरता' तो इस दृश्यमान जगत का सत्य है और यहीं 'गोचरता' कवि या कलाकार के भाव जगत में चित्र रूप का निर्माण करती है। यहाँ अरस्तू के विचार में अतिवादिता दिखाई देती है। इस संदर्भ में एबर क्रोम्बे ने लिखा है कि 'अरस्तू का तर्क था यदि कविता प्रकृति का केवल दर्पण होती तो वह हमें उससे कुछ अधिक नहीं दे सकती थी, जो प्रकृति देती है, पर तथ्य यह है कि हम कविता का आस्वादन इसलिए करते हैं कि वह हमें वह प्रदान करती है जो प्रकृति नहीं दे सकती। (60) यहाँ कविता के लिए प्रयुक्त 'आस्वादन' शब्द का प्रयोग प्राकारान्तर से ऐन्द्रिय एवं बहुआयामी बिम्बों को अपने में छिपाए हुए हैं। रोजमंड ट्यूबे के मत से 'नवोत्थान' काल के कवि का बिम्ब विधान अनुकरण सिद्धांत की व्याख्या के अनुरूप था। वह कला को अनुकृति का परिणाम तो मानता था, किंतु उसकी दृष्टि में कलाकृति से हमें जो आनन्द मिलता है उसका कारण यथार्थ जगत की वस्तु से उसका साम्य नहीं, वरन् कलाकृति का रूपगत सौंदर्य है। वह बिम्ब को इस कलात्मक रूपाकृति का एक तत्व मानता था। अनुकरण करते समय कलाकृति प्रकृति में क्रम-विन्यास तथा संगति ढूँढने की चेष्टा करती है। कला को क्रमगत संगति के रूप में देखने के कारण कलाकार उपुयक्तता के आधार पर बिम्बों का चयन करता है। इसके सिवा उसके मत से अनुकृतियों में केवल क्रमगत आकारों का ही नहीं, वरन् अमूर्त भावों तथा मूल्यों का भी महत्व है। यह प्रवृत्ति भी उसकी बिम्ब-रचना को प्रभावित करती है। सुस्पष्ट 11131
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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