________________ इन महाकाव्यों की विषय वस्तु से स्पष्ट है कि इनमें होमर के साहित्य सिद्धान्तों अथवा काव्य विषयक मान्यताओं का कोई निश्चित विवरण उपलब्ध नहीं है। नगेन्द्र के शब्दों में 'इलियड और ओडेसी की कविता का अभिव्यंजना वैभव होमर की काव्यालोचन शक्ति का असंदिग्ध प्रमाण है, परंतु प्रत्यक्षतः कहीं भी उन्होंने सिद्धांत विवेचन प्रासंगिक रूप से भी नहीं किया।' यहाँ नगेन्द्र द्वारा 'अभिव्यंजना' वैभव' का उल्लेख गहन है जो अपने में बिम्ब के वैभव का राज छिपाए हुए है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पाश्चात्य समीक्षा के क्षेत्र में यह प्रारम्भिक दौर था, वे कविता और नाटकों के माध्यम से भाव और अनुभूति की इबारत लिख रहे थे इसलिए उनमें सीधापन था। कथन में आज की वक्रता नहीं थी किन्तु लोकमानस को प्रभावित व संवेदित करने की क्षमता थी। बिम्बांकन, भाव, अनुभूति व संवेदना का होता है, इसलिए कविता अथवा नाटक चाहे जिस युग का हो, जाने आनजाने बिम्ब की स्थिति होगी ही। होमर के पश्चात् हैसियड, पिंडार, ऐरिस्टाफेनीज, गोर्जियास, सुकरात, प्लेटो, ईस्किलन, थियोफ्रेस्टस एवं लौंजाइनस जैसे महान कवि विचारक व दार्शनिक हुए, जिनके विचार से पाश्चात्य समीक्षा शास्त्र के नये प्रतिमान स्थापित होते गये। (57) 1. अनुकरण सिद्धांत में बिम्ब के संकेत - पाश्चात्य साहित्य में प्लेटो और अरस्तू के विचार, समीक्षा शास्त्र में मील का पत्थर साबित हुए हैं। अनुकरण सिद्धांत की व्याख्या दोनों ने अपनी-अपनी दृष्टि से की है। प्लेटो की मान्यता है कि एक कलाकार चूंकि लौकिक सत्य का ही अनुकरण अपनी कृति में करता है, इसलिये उसमें उसी की प्रतिच्छवि होती है। और अन्ततः यह सत्य शुद्ध सत्य का प्रतिरूप सिद्ध होता है। उसके विचार से काव्य या साहित्य एक आदर्श नागरिक को सत्य की शिक्षा नहीं देता है इसीलिए उसने अपने आदर्श राज्य में सत्य अथवा कवि को कोई स्थान नहीं दिया। प्लेटो विशुद्ध आदर्शवादी दार्शनिक था। उसने कवि के जिस लौकिक सत्य के अनुकरण की बात की है वह अनुकरण ही बिम्ब के निकट है। मैं समझती हूं कि जिस वस्तु या सत्य का अनुकरण किया जायेगा उसका बिम्ब तो सबसे पहले अनुकरण कर्ता पर पड़ेगा। इसलिए अनुकरण में बिम्ब निष्पादन की पूरी-पूरी गुंजाइस है। 112