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3 ध्वनि का मूल आधार है ‘स्फोट सिद्धांत'। स्फोट का अर्थ है-'स्फुटित अर्थः यस्मात् सस्फोटः अर्थात् जिससे अर्थ स्फुटित होता है, उसे स्फोट कहते है। इसकी कल्पना पदार्थ के संबंध में की गयी है। नगेन्द्र के शब्दों में 'पूर्व-पूर्व वर्ण के अनुभव से एक प्रकार का संस्कार उत्पन्न होता है उस संस्कार से सहकृत अन्त्य वर्ण के श्रवण से तिरोभूत वर्णो को ग्रहण करने वाले एक मानसिक पद की प्रतीति उत्पन्न होती है, इसी का नाम पद स्फोट है । (45) 'इसी प्रकार पूर्व पदानुभवजनित संस्कार सहकृत–अन्त्य पद श्रवण से अनेक पदावगाहिनी जो मानसी वाक्य प्रतीति होती है, वैयाकरण उसे वाक्य विस्फोट कहते है। (46) अस्तु स्फोट की प्रकल्पना बिम्ब के मूलरूप के काफी निकट है। प्रत्येक सार्थक शब्द के द्वारा अथवा वाक्य के द्वारा जो बिम्ब प्रस्फुटित होता है, वह वैयाकरणों के स्फोट से भिन्न नहीं है। प्रत्येक काव्योक्ति द्वारा जिस काव्य बिम्ब की उद्बुद्धि होती है उसका अन्तर्भाव भारतीय काव्य शास्त्र की ध्वनि में अनायास किया जा सकता है। (47) ध्वनि सिद्धांत में यदि रसध्वनि का विशेष महत्व है, तो बिम्ब में भाव का। बिम्ब के बिना रसनिष्पत्ति असम्भव है।
4 रस को काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया गया है। यह एक अमूर्त एवं सूक्ष्म तत्व है जिसकी अभिव्यक्ति के लिए स्थूल व मूर्त का अवलम्ब आवश्यक हो जाता है। ये मूर्त अथवा स्थूल माध्यम ही बिम्ब के रूप में प्रस्तुत होते हैं। बिम्ब का प्रत्यक्षतः एवं अप्रत्यक्षतः सम्बन्ध भाव से होता है। यद्यपि भारतीय काव्यशास्त्र में प्रत्यक्षतः बिम्ब विधान पर लेख नहीं मिलता किंतु अप्रत्यक्षतः उसकी उपस्थिति देखी जा सकती है। आचार्य अभिनवगुप्त ने 'ग्रीवाभंगाभिरामम' 'मानसी साक्षात्कार' का उद्धरण देते हुए लिखा है कि 'तस्य च ग्रीवाभंगाभिरामम्-इत्यादि वाक्येभ्यो वाक्यार्थ प्रतिपत्तेरनन्तरं मानसी साक्षात्कारात्मिका प्रतीति रूप जायते ।(48)
वस्तुतः बिम्ब के स्वरूप पर विचार करने वाले प्रायः सभी समीक्षकों ने कवि के वस्तु से भावात्मक तादात्म्य या रागात्मक संबंध को बिम्ब रचना के लिए आवश्यक माना है। गिरिजा कुमार माथुर के अनुसार 'कोई भी उपकरण तब तक सार्थक नहीं हो सकता जब तक कि उसमें भाव सम्पृक्ति न हो और जब तक वह अनुभूति की उष्मा से दीप्त न हो गया हो किसी भी उपकरण को काव्य के उद्दीप्त
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