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काव्यशास्त्र में अनेक अलंकार उपचार के ही आश्रित हैं। जैसे विशेषण विपर्यय और मानवीकरण का चमत्कार उपचार वक्रता के अंतर्गत है । (39)
विशेषण वक्रता में कारक या क्रिया में विशेषण के प्रभाव से लावण्य का उन्मेष होता है। लिंग वक्रता में पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग के प्रयोग के कारण कथन में वक्रता आती है। 'रघुवंश' में वियोगी राम के वियोग में लताओं और मृगियों की सहानुभूति का उल्लेख नारी के सरस, कोमल, द्रवीभूत हृदय का ही बिम्बांकन करता है । इसी प्रकार पंत ने 'सिखा दो ना हे मधुप, कुमारि, मुझे भी अपने मीठे गान' के द्वारा गायन की मधुरता के लिये 'भ्रमरी' का बिम्ब प्रस्तुत किया है।
वाक्य- वक्रता का आधार पूरा वाक्य होता है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है- 1. सहजा वस्तु वक्रता और 2. अर्थालंकारों के प्रयोग कौशल से जन्य वक्रता । कवि की सहज प्रतिभा द्वारा प्रवृत वस्तुओं का सजीव चित्रण सहजावाक्य वक्रता कहलाता है। जब वस्तुओं का स्वाभाविक चित्ताकर्षक वर्णन होता है तो उसे स्वाभाविक अलंकार कहते है । बिम्ब विधान में सहज स्वाभाविकता व कल्पना की दृष्टि से बिम्ब के दो भेद किये गये है - 1. लक्षित बिम्ब और 2. उपलक्षितबिम्ब । 'लक्षित बिम्ब विधान सहज वस्तुवक्रता से पूर्णतः मिलता है। आधुनिक बिम्बवादी प्रस्तुत का सचित्र वर्णन करने वाले लक्षित बिम्ब को ही वास्तविक बिम्ब मानते है । उपलक्षित बिम्ब में सादृश्य के आधार पर परोक्ष रूप से भावों को तीव्रता प्रदान की जाती है | (40)
प्रबंध वक्रता के अंतर्गत प्रबंध से तात्पर्य महाकाव्य नाटक आदि है, इससे सम्बद्ध कवि कौशल प्रबंध वक्रता है । प्रकरण वक्रता का आशय प्रबंध के कथा प्रसंग है।' प्राचीन कथा में मूल को आघात न पहुंचाते हुए नवीन कल्पना उत्थान जैसे 'रघुवंश' में कालिदास द्वारा कल्पित 'रघु' और 'कोत्स' का प्रकरण, शाकुन्तला में दुर्वाशा के 'शाप' की कल्पना, प्रकरण वक्रता के उदाहरण हैं । बिम्ब सिद्धांत में इस प्रकार की कल्पना को प्रकरण बिम्ब अभिहित किया गया है | ( 41 )
ध्वनि सिद्धांत का प्रतिपादन आनन्दवर्धन ने किया। इसमें रस-ध्वनि, अलंकार ध्वनि आदि के रूप में अन्य प्रमुख सिद्धांतों का समावेश है, उनके अनुसार
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