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________________ अन्तर से बार-बार ग्रथित होते हैं जिससे नाद अथवा श्रोत बिम्ब की सृष्टि होती है। इसमें अनुप्रास एवं यमक अलंकार का तिरोभाव हो जाता है। जैसे - कनक कोमल केसर कलियाँ । ज्ञान गिरा गुण की गलियाँ ।। यहाँ 'क' और 'ग' व्यंजन का अनुप्रासमय प्रयोग मधुर ध्वनियों के रूप में नाद बिम्ब का वाहक है। रूढ़ि वैचित्र्य वक्रता के अंतर्गत कवि अपनी प्रतिभा से किसी शब्द के रूढ़ या वाच्य अर्थ को नवीन रूप में प्रस्तुत करता है जैसे-'काम सन्तु दृढ़ कठोर हृदयों रामो अस्मि सर्वस हे' उद्धरण में राम शब्द अपने रूढ़ अर्थ (दशरथ-पुत्र) से भिन्न कठोर-हृदय व्यक्ति का बिम्ब प्रस्तुत करता है, जो सीता के वियोग में भी प्राणधारण कर रहा है। (38) पर्याय वक्रता में एक ही अर्थ के द्योतक कई शब्द होते हैं, किंतु कवि उनमें से किसी ऐसे शब्द का चयन करता है जो विविक्षित वस्तु को प्रस्तुत करने में समर्थ एवं आहलादकारी हो, जैसे-वीरवेश में श्रीकृष्ण के लिए वंशीधर की अपेक्षा 'चक्रधर' पर्याय का प्रयोग करना सार्थक होगा क्योंकि इसका बिम्ब रस स्फुरण में अधिक सहायक होगा। नारी के संबंध में मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध पंक्ति 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, में यदि अबला के पर्याय के रूप में 'नारी' शब्द का प्रयोग कर दिया जाय तो बिम्ब ग्रहण में बाधा उत्पन्न होगी। 'अबला' से असहाय स्त्री का जो बिम्ब प्रस्तुत हो रहा है, वह नारी शब्द से नहीं। उपचार वक्रता में भेद होते हुए भी अभेद का अनुभव होता है। इसमें जब अमूर्त पर मूर्त्त का, अचेतन पर चेतना का आरोप होता है तब बिम्ब का वास्तविक स्वरूप उपलब्ध होता है जैसे "जल भी परम उमंग भरा। नाच रहा है रंग भरा-' पंक्ति में जल पर नर्तक का आरोप यानी जड़ पर चेतन का आरोप दृश्य बिम्ब का संकेतक है। नगेन्द्र के शब्दों में 'इसमें संदेह नहीं कि उपचारवक्रता काव्य कला का अत्यंत मूल्यवान उपकरण है, लक्षणा का वैभव मूलतः उपचार वक्रता में ही निहित रहता है। योरोपीय [105]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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