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________________ मात्र अप्रस्तुत योजनातक सीमित नहीं किया जा सकता, यह बात ध्यान देने योग्य है कि जहाँ अलंकार के द्वारा समानता असमानता के आधार पर वस्तु के गुण, धर्म, रूप आदि को प्रस्तुत किया जाता है वही बिम्ब में ऐन्द्रियगम्यता द्वारा मानस साक्षात्कार किया जाता है जो प्रायः आरोप व सादृध्य द्वारा होता है। आचार्य दण्डी में समस्त वाङ्मय को दो भागों में विभाजित किया है- 1. स्वाभावोक्ति और 2. वक्रोक्ति। ये दोनों ही बिम्ब के समीपस्थ हैं। स्वाभावोक्ति में वस्तुओं का स्वाभाविक वर्णन होता है और 'जहाँ वर्ण्य वस्तु का सजीव चित्र प्रस्तुत हो जाए वहाँ लक्षित बिम्ब होता है। उदाहरण के लिए भवभूति की निम्नलिखित पंक्तियां देखी जा सकती हैं जिसमें अश्वमेध यज्ञ के घोड़े का सजीव वर्णन किया गया है पश्चात् पुच्छ वहित विपुलं तच्च घनोत्यजसं दीर्घग्रीवः स भवति खुरास्तस्य चत्वार एव शप्पाण्यति प्रकिरति शकृत्पिण्डका नाम मात्रान किं व्याख्या व्रजति सपुनर्दूरमें हयेहि यामः ।। (30) स्वाभावोक्ति की शैली की विशेषता है 'चित्रोदात्तता। 'चित्र' के साथ जुड़ा उदात्त शब्द इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि चित्र की कोटि उत्तम होनी चाहिए अर्थात् चित्र अस्पष्ट न होकर स्पष्ट होना चाहिए।) स्वाभावोक्ति के अतिरिक्त वक्रोक्तिमूलक अलंकारों में भी बिम्ब की छवि उभरती है। गोचरता बिम्ब के लिए आवश्यक है जो प्रायः सादृश्य मूलक अलंकारों में देखी जा सकती है। बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव पर आश्रित अलंकारों में सुंदर बिम्ब बनते हैं। पाश्चात्य समीक्षा में "बिम्ब' और 'मेटाफर' (रूपक) को एक दूसरे के पर्याय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। (32) नामवर सिंह के अनुसार भी 'मेटाफर' शब्द के रहते हुए "बिम्ब' शब्द अनावश्यक ही नहीं भ्रामक भी है।33) जबकि बिम्ब और अलंकार में बुनियादी यह अन्तर है कि "बिम्ब स्वच्छन्द होने के कारण अनिवार्यतः प्रतीकात्मक होता है, जबकि रूपक के लिए यह आवश्यक नहीं है। (34) भारतीय समीक्षा में अलंकारों की संख्या पाश्चात्य समीक्षा की तुलना में कई गुना 1031
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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