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________________ हरिश्चन्द्र वर्मा ने 'बिम्ब' की विशद व्याख्या करते हुए लिखा है कि मन की संवेदनाओं का सीधा संबंध इन्द्रियों से है और इन्द्रियों का सम्बन्ध बाह्य जगत के वस्तु व्यापारों और उनके गुणों-रूप, ध्वनि, गंध, स्पर्श और रस से है, इसलिए कविता में अनुभूतियों के मूर्तीकरण के लिए ऐन्द्रिय मूर्त आधार मानस गोचर रूप में प्रस्तुत किया जाता है, इसी भावोत्पादक मानसी रूप दृष्टि को बिम्ब कहा जाता है। कविता के प्रायः सभी तत्व अलंकार, विभावन व्यापार, प्रतीक, मानवीकरण आदि संयुक्त होकर इसी मानसी रूप रचना में प्रवृत्त होते है । (14) ___ इस प्रकार उक्त परिभाषाओं के आलोक में कहा जा सकता है कि बिम्ब निर्माण में कवि की अनुभूति और कल्पना, भाव और विचार, वासना (पैशन) एवम् ऐन्द्रिय की पूर्णरूपेण सहभागिता होती है। बाह्य वस्तु का साक्षात्कार आभ्यान्तरित रूप से जितना ही गहन होता है, बिम्ब की प्रक्रिया उतनी ही सहज होती है। भाव काव्य बिम्ब का प्रेरक तत्व है |(15) कल्पना भाव की अनुगामिनी है। अनुभूति विहीन भाव या विचार के कोई शब्द-चित्र अथवा वस्तुचित्र मानस पटल पर अंकित नहीं हो सकता। भाव के उद्बुद्ध होते ही कल्पना का कार्य व्यापार प्रारंभ हो जाता है। सृजन में कल्पना की अहम् भूमिका रहती है, जो अनुभूति की सघनता से मानस पटल पर जीवन्त मूर्ति का निर्माण करती है। "तीव्र अनुभूति ही वास्तव में कल्पना को अनुकूल रूप विधान में तत्पर करती है ।(16) इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जब उबुद्ध भावना, कल्पना के सहारे किसी दृश्य अथवा वस्तु की क्रियात्मक, प्रतिक्रियात्मक रूप को ऐन्द्रियता अथवा अतीन्द्रियता के आधार पर प्रस्तुत करती है, तब उसका एक चित्र मानस पटल पर व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप में उभर जाता है। मस्तिष्क में उभरे हुए इस छवि को बिम्ब कहते है। --00-- 11001
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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