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एवं हिन्दी के लेखकों, समीक्षकों ने अपने-अपने मानदण्डों से 'बिम्ब' को परिभाषित
किया है :
सी.डे.लेविस के अनुसार :- काव्य बिम्ब शब्दात्मक ऐन्द्रिक चित्र है, जो कुछ अंशों में रूपात्मक होते हुए भी मानवीय भावों का अभिव्यंजक होता है।) किसी पदार्थ का मनश्चित्र, मानसिक प्रतिकृति, कल्पना एवम् स्मृति में उपस्थित चित्र बिम्ब है। मानसिक पुनर्निर्माण को बिम्ब कहते हैं। बिम्ब हृदय और मस्तिष्क की आँखों से देखी जाने वाली वस्तु है।6) डॉ.नगेन्द्र की मान्यता है, कि काव्य-बिम्ब पदार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानसिक छवि है, जिसके मूल में भाव की प्रेरणा रहती है।) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने यह कहकर काव्य में बिम्ब को प्रमुख माना है कि 'काव्य में अर्थग्रहण करने मात्र से काम नहीं चलता, बिम्ब ग्रहण अपेक्षित होता है। (१) कैरोलिन स्पर्जियन का कथन है, कि कवि वर्ण्य-विषय को जिस ढंग से देखता है, सोचता है या अनुभव करता है बिम्ब उसकी समग्रता, गहनता, रमणीयता एवं विशद्ता को अपने द्वारा उद्भूत भावों एवम् अनुषंगो के माध्यम से पाठक तक सम्प्रेषित करता है। केदारनाथ सिंह ने बिम्ब निर्माण में कल्पना और ऐन्द्रियता के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए लिखा है कि "बिम्ब वह शब्द चित्र है जो कल्पना के द्वारा ऐन्द्रिय अनुभवों के आधार पर निर्मित होता है। (10) डॉ.सुधा सक्सेना के मत से 'अमूर्त विचार या भावना की ऐन्द्रिय अनुभूति के आधार पर कल्पना के द्वारा पुनर्रचना करने वाले शब्द चित्र को बिम्ब कहते हैं। (11) नई कविता के संदर्भ में मानव मन अथवा कल्पना में बनने वाले चित्र को बिम्ब कहते हैं। यह कवि के चिंतनशील मनःस्थिति का वह मानसचित्र है जिसे रूपक आदि की सहायता से अभिव्यक्त किया जाता है। यह शब्द मानस प्रतिमा का पर्याय है । (12) मनोवैज्ञानिकों एवं समीक्षकों ने दृश्य, गंध, स्पर्श और स्वाद के ऐन्द्रिय संवेदनात्मक अनुभूति की अभिव्यक्ति को भाव्यात्मक बिम्ब माना है |(13)
(To Psychologist and to many critics imagery in poetry is Eypression of sense Experience chennelled through sight hearing, Smell, touch and taste impressed upon the mind and setforth in verse in such fushion at to recall as vividly and faithully as passible as the original sensation.)
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