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________________ 'सम्बोधि' का भी मूलाधार है 'जैनागम' । इसे विद्वानों द्वारा जैनपरम्परा की गीता माना गया है । यदि गीता - दर्शन में ईश्वरार्पण की भावना का प्राबल्य तो जैन दर्शन में आत्मार्पण की महिमा है । इसमें आदि से अन्त तक आत्मा की परिक्रमा करते हुए चलने का निर्देश । गीता और संबोधि की भावभूमि में समानता है। आचार्य श्री ने लिखा है कि 'गीता का अर्जुन कुरूक्षेत्र के समरांगण में क्लीव होता है, तो संबोधि का मेघकुमार साधना की समरभूमि में क्लीव बनता है। गीता के गायक योगीराज कृष्ण है और संबोधि के गायक हैं श्रमण महावीर । अर्जुन का पौरूष जाग उठा, कृष्ण का उपदेश सुनकर और महावीर का उपदेश सुनकर मेघ कुमार की आत्मा चैतन्य से जगमगा उठी । दीपक से दीपक जलता है। एक का प्रकाश दूसरे को प्रकाशित करता है। मेघकुमार ने जो प्रकाश पाया वही प्रकाश व्यापक रूपसे संबोधि में है । " (52) आचार्य महाप्रज्ञ मात्र दार्शनिक, लेखक अथवा कवि ही नहीं है, अपितु आशुकवि भी हैं। आशुकवित्व की शक्ति विरले लोगों में ही होती है । 'अतुला- तुला' मुक्तक काव्य उनकी आशु कवित्व, समस्यापूर्ति का प्रकृष्ठ उदाहरण है । एक सन्त होने के नाते आचार्य श्री स्थान-स्थान का परिभ्रमण कर अपने दिव्य प्रवचनों से जनमानस का संस्कार करते रहे हैं। विद्वद सभाओं में आपकी उपस्थिति तथा अकस्मात् दिये गये विषयों पर तत्काल संस्कृत में कविता की प्रस्तुति सराहनीय रही है। उन्होंने श्रवणबेलगोल (कर्नाटक) में बाहुबली की मूर्ति के समक्ष आशु कवित्व करते हुए अपनी मेधा का परिचय दिया था, जिसका कुछ अंश दृष्टव्य है :स्वतन्त्रतायाः प्रथमोऽस्ति दीपः न तो न वा यत् स्खलितः क्वचिन्न त्यागस्य पुण्यः प्रथमः प्रदीपः परम्पराणां प्रथमा प्रवृत्तिः समर्पणस्याद्य पदं विभाति, विसर्जनम् मान पदे प्रतिष्ठम् । शैलेश शैली विद्धत स्वकार्ये, शैलेश एष प्रतिभाति मूर्त्तः | (53) 87
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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