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उसमें भीतर का कवि मुखरित हो उठता है। आचार्य श्री का प्रिय विषय है चिंतन, मनन एवम् दर्शन। इसलिए उनके काव्य में 'दर्शन' का अद्भुत सांमजस्य मिलता है। कविता सृजन के संबंध में महाप्रज्ञ जी लिखते है ‘कविता मेरे जीवन का प्रधान विषय नहीं है। मैंने इसे सहचरी का गौरव नहीं दिया। मुझे इससे अनुचरी का समर्पण मिला है। मैंने कविता का आलंबन तब लिया, जब चिंतन का विषय बदलना चाहा। मैंने कविता का आलंबन तब लिया, जब दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाते-सुलझाते थकान का अनुभव किया। (50) प्रायः कवियों के लिए कविता 'सहचरी' के रूप में ही अभिव्यक्त हुयी है, उसे अनुचरी के रूप में कोई संत ही स्वीकार कर सकता है। इसीलिए महाप्रज्ञ की कविता पाठक या श्रोता का वैचारिक मंथन करती है। उन्होंने गद्य काव्य के रूप में 'अनुभव चिंतन मनन', 'गूंजते स्वर बहरे कान', 'बंदी शब्द : मुक्त भाव', 'भाव और अनुभाव', 'विजय के आलोक में', "विजय यात्रा', 'अग्नि जलती है' आदि कृतियों की रचना की। 'फूल और अंगारे' उनकी छन्दोबद्ध कविताओं का संग्रह है तो 'नास्ति का अस्तित्व' लघु काव्यकृति। महाकाव्य के रूप में 'ऋषभायण' उनकी सर्वोत्तम कृति है। इस महाकाव्य में आदि तीर्थकर ऋषभदेव के जीवन चरित, कार्य एवं प्रदेय का सांगोपांग वर्णन किया गया है। 'लोक' और 'अध्यात्म' का इसमें अद्भुत सामंजस्य है। ऋषभायण की निर्माण प्रक्रिया पर आचार्य श्री लिखते हैं कि 'इसका निर्माण एक विशेष कल्पना के साथ हुआ इसलिए यह न केवल विद्वद योग्य है और न केवल जनभोग्य, यह दोनों की मनोदशा का स्पर्श करने वाला है। .... इस महाकाव्य में कथावस्तु की सरलता, व्याख्यान की शैली का अनुभव करा रही है और रसात्मकता काव्य की शैली का अनुभव करा रही है। अभिधा व्याख्यान का आनंद दे रही है। लक्षणा और व्यंजना काव्य का आस्वाद करा रही है। (51)
आचार्य महाप्रज्ञ की कथा-साहित्य में भी गहरी पैठ है। 'गागर में सागर' उनकी लघुकथाओं का संग्रह है। इनकी कहानियां मर्मस्पर्शी हैं। 'निष्पत्ति' लघु उपन्यास है जिसमें लेखक का अहिंसात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है।
___ आचार्य श्री संस्कृत साहित्य के मर्मज्ञ हैं। संस्कृत-साहित्य में 'अश्रुवीणा', 'रत्नपाल चरित', 'अतुलातुला', 'मुकुलम्' आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। मंदाक्रांता
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