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समस्याएँ और अणुव्रत, 'नैतिक पाठमाला' आदि कृतियाँ मुख्य हैं।
विविधा के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ के विविध विषयों पर प्रवचन संग्रहित हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की वक्तृत्व क्षमता अद्भुत एवं पारदर्शी है। वे जिस भी वर्ग को संबोधित कर रहे होते हैं, उनके एक-एक शब्द उस वर्ग से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर्मन को स्पर्शित करते हैं। उनकी विनम्रवाणी की अमृत धार मन के कालुष्य, विभ्रम अथवा मिथ्या को प्रक्षालित कर सत्य को उद्घाटित करती है। इस संबंध में मुनि दुलहराज लिखते हैं कि 'युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ कभी दार्शनिक विषयों पर प्रवचन करते हुए विद्वद मंडली को संबोधित करते हैं, तो कभी सामान्य विषयों पर जनसाधारण के बीच बोलते हैं। कभी वे शिक्षक और विद्यार्थियों को उद्बोधित करते हैं, तो कभी राजनयिकों और राज्याधिकारियों को दिशा निर्देश देते हैं। कभी महिलाओं को उनके कर्तव्यों से परिचित कराते हैं, तो कभी युवकों को दायित्व बोध की अगति देकर अध्यात्म में पुरूषार्थ के विस्फोट की बात करते हैं । (69) अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ये चार पुरूषार्थ हैं। मोक्ष अध्यात्म की पराकाष्ठा है। पुरूषार्थ एक सात्विक कर्म है, जिसमें 'सद्' की संपूर्ण सत्ता है। जगत् का उन्मेष, जीवन का आनंद, आत्मा की परिशुद्धि पुरूषार्थ का हेतु है। दिव्य संदेशों से मण्डित आचार्य महाप्रज्ञ के प्रवचन 'घट-घट दीप जले', 'मैं : मेरा मन मेरी शांति', 'विचार का अनुबंध', 'समस्या का पत्थर', 'अध्यात्म की छेनी', 'तुम अनंत शक्ति के स्त्रोत हो', 'नैतिकता का गुरूत्वाकर्षण', 'तट दो प्रवाह एक', 'तेरापंथ शासन अनुशासन', 'धर्म के सूत्र', 'हिन्दी जनजन की भाषा', 'बालदीक्षा पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण', 'विसर्जन', "समाज व्यवस्था के सूत्र', 'संभव है
समाधान' आदि कृतियों में संग्रहित है।
यदि निबंध गद्य की कसौटी है तो कल्पना, अनुभूति और भाव पद्य की। निबंध में तथ्य को सत्य की कसौटी पर कसा जाता है, तो कविता में अनुभूति व कल्पना के सहारे जीवन के उच्चमार्ग को व्यक्त किया जाता है। एक में बुद्धितत्व की प्रधानता है तो दूसरे में हृदय की। एक में विचार है तो दूसरे में भाव। आचार्य महाप्रज्ञ के काव्य में इन दोनों तत्वों की प्रधानता है। लेखक जब विचार, दर्शन की गुत्थियों को सुलझाते-सुलझाते थक जाता है तब मानसिक आह्लाद हेतु
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