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________________ पड़ा, किन्तु वे धुन के पक्के थे, रंचमात्र भी विचलित नहीं हुए। सत्य, अहिंसा एवं आचरण की शुद्धता जीवन के उत्थान के लिए वे आवश्यक मानते थे। वे कवि और महान् साहित्यकार के रूप में भी प्रतिष्ठित थे। आचार्य भिक्षु के तत्वदर्शन से अधिक प्रभावित होने के कारण ही आचार्य महाप्रज्ञ ने उसकी बारीकियों की स्थापना 'भिक्षु विचार दर्शन' में की है। 'जयाचार्य' तेरापंथ धर्मसंघ के चौथे आचार्य थे। आप एक स्थिर योगी के रूप में विख्यात रहे हैं। आगम ग्रंथों के अतिरिक्त स्तुति, दर्शन, न्याय, छंद, व्याकरण, ध्यान-योग जैसे विविध विषयों के आप महापण्डित थे। विरोधी व अविरोधी दोनों समान रूप से आपकी प्रतिभा का सम्मान करते थे। एक अन्य मतावलम्बी ने जयाचार्य के सम्बद्ध में कहा था कि - "जिस संघ में ऐसे विचारवान स्थिर योगी मुनि विद्यमान है, उस संघ की नींव को कम से कम 100 वर्ष तक कोई हिला नहीं सकती। (48) आचार्य तुलसी 'तेरापंथ धर्मसंघ' के नौवें गुरू थे। आपकी प्रतिभा प्रखर थी। साम्प्रदायिक सद्भाव, नारी जागरण, संस्कार, निर्माण, रूढ़ि उन्मूलन एवं सामाजिक बुराईयों के बहिष्कार हेतु आप जीवनपर्यन्त सक्रिय रहे। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान एवं जीवन विज्ञान की त्रिधारा मानवमात्र में नैतिक, मानसिक और उसमें संपूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक है। ऐसे महान संत एवम गरू की वैचारिक धारणाओं से सम्पोषित आचार्य महाप्रज्ञ ने उनके त्रय सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करते हुए उसे राष्ट्र की शक्ति और अखण्डता के लिए आवश्यक माना है। जैन दर्शन और सिद्धांत से सम्बन्धित कृतियों में आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन दर्शन के मूलतत्वों की व्याख्या वर्तमान चिंतन धाराओं के संबंध में किया है, जिनमें 'जैन धर्म मनन और मीमांसा', 'जैन न्याय का विकास', 'सत्य की खोज', 'अनेकांत के आलोक में', 'कर्मवाद', 'मनन और मूल्यांकन', (प्रवचनों का लघुसंग्रह), 'अहिंसा तत्व दर्शन', 'अहिंसा की सही समझ', 'अहिंसा और उसके विचारक', 'जैन दर्शन के मौलिक तत्व', 'जैन परम्परा का इतिहास', 'जैन तत्व चिंतन', 'जैन धर्म दर्शन', "जैन-दर्शन में आचार-मीमांसा', "जैन दर्शन में ज्ञान-मीमांसा', 'जैन दर्शन में तत्व मीमांसा', 'जीव-अजीव', 'बीज और बरगद', 'अणुव्रत दर्शन', राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय 1831
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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