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________________ आचार्य महाप्रज्ञ का संपूर्ण जीवन स्वाध्याय, चिंतन-मनन, साधना का अनुपम उदाहरण है। यही कारण था कि वे मात्र चौबीस वर्ष तक की उम्र में ही साहित्य एवं दर्शन से सम्बन्धित अन्यान्य पुस्तकों का गूढ़ अध्ययन कर सके। अनेकान्त दर्शन ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया इसलिए कोई भी मत अथवा दर्शन उन्हें उद्वेलित नहीं कर सका। वे किसी के 'विरोध' अथवा 'समर्थन' के पचड़े में न पड़, उसकी विशेषताओं को समन्वित करते रहे। आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं कि 'अनेकान्त को पढ़ने के कारण अन्य दर्शनों के प्रति अनत्व का भान नहीं रहा। सत्य, सत्य है फिर उसे किसी भी दर्शन ने अभिव्यक्त किया हो-यही दृष्टि निष्पन्न हुई। अब मेरे सामने दर्शन, दर्शन है, सत्य, सत्य है, अन्य सब भेद गौण है । (44) आचार्य महाप्रज्ञ तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों से बहुत प्रभावित थे। आचार्य श्री जहां ऋषभदेव, महावीर स्वामी, आचार्य भिक्षु, जयाचार्य, दीक्षागुरू कालूगणी, गुरू श्रेष्ठ आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रभावित थे, वहीं अपने युग के शक्तिमान विचारक कार्लमार्क्स, रस्किन, टालस्टाय तथा महात्मा गांधी के दर्शन का भी इन पर प्रभाव पड़ा। वे मार्क्स चिंतन की विशेषताओं से आकर्षित थे, न्यूनताओं से नहीं। आचार्य तुलसी के साथ उन्होंने खूब पद यात्राएँ की, प्रवचन के द्वारा जनमानस का मंथन कर, उसे सद्वृत्ति की ओर मोड़ा। पदयात्रा के दरम्यान प्रकृति के विविध मनोहारी दृश्य एवं समाज की विभिन्न गतिविधियाँ इन्हें प्रभावित करती और वे लेखनी के द्वारा कोरे पन्नों पर उतरती जाती। आचार्य महाप्रज्ञ ने गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में समान रूप से लिखा। संस्कृत एवं हिन्दी उनके लेखन का माध्यम बनी। उनके साहित्य का क्षेत्र विस्तृत है, दर्शन उनका प्रिय विषय है। मुनि दुलहराज ने प्रहाप्रज्ञ के संपूर्ण साहित्य को निम्नलिखित सात विभागों में विभक्त किया है : (1) प्रेक्षा साहित्य (2) भक्ति और विचार (3) दर्शन और सिद्धांत (4) विविधा 181 ।
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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