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________________ प्रस्तावना VIII इस गाथा की टीका करते हुए आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी तो यहाँ तक कहते हैं कि तत्र आदौ अखिलयत्नेन सम्यक्त्वं समुपाश्रयणीयम्। इन तीनों में प्रथम ही समस्त उपायों से, जिस प्रकार भी बन सके वैसे, सम्यग्दर्शन अंगीकार करना चाहिए। इसके प्राप्त होने पर अवश्य ही मोक्षपद प्राप्त होता है। और इसके बिना सर्वथा मोक्ष नहीं होता। यह स्वरूप की प्राप्ति का अद्वितीय कारण है। अतः इसके अंगीकार करने में किंचित् मात्र भी प्रमाद नहीं करना। मृत्यु का वरण करके भी इसे प्राप्त करने का प्रयत्न अवश्य करना। बहुत कहाँ तक कहें? इस जीव के भला होने का उपाय सम्यग्दर्शन समान अन्य कोई नहीं। इसलिए उसे अवश्य अंगीकार करना। सम्यग्दर्शन के बिना संयम की उत्पत्ति ही सम्भव नहीं है-इस अभिप्राय का पोषक, धवला टीकाकार आचार्य वीरसेनस्वामी का निम्न अभिप्राय माननीय है मिथ्यादृष्टयोऽपि केचित्संयता दृश्यन्त इति चेन्न, सम्यक्त्वमन्तरेण संयमानुपपत्तेः। शंका-कितने ही मिथ्यादृष्टि जीव संयत देखे जाते हैं? समाधान-नहीं, क्योंकि, सम्यग्दर्शन के बिना संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। (षट्खण्डागम पुस्तक-१, खण्ड-१, भाग-१, पृष्ठ ३८०) सम्यग्दर्शन से रहित जीव भले ही व्रत-तप से संयुक्त हो तथापि वह पापी है। इस प्रकार का निम्न उल्लेख भी द्रष्टव्य है ... व्रत समिति का पालन भले ही करे, तथापि स्व-पर का ज्ञान न होने से वह पापी ही है.... सिद्धान्त में मिथ्यात्व को ही पाप कहा है, जब तक मिथ्यात्व रहता है तब तक शुभाशुभ सर्व क्रियाओं को अध्यात्म में परमार्थतः पाप ही कहा जाता है। (समयसार कलश १३७ का भावार्थ) सम्यग्दर्शन के सम्बन्ध में आचार्य सकलकीर्ति द्वारा रचित प्रश्नोत्तर श्रावकाचार के निम्न कथन भी मननीय है * व्रत-चारित्ररहित तथा विशेष ज्ञानरहित अकेला सम्यक्त्व भी अच्छा है-प्रशंसनीय है, परन्तु मिथ्यात्वरूपी जहर से बिगड़े हुए व्रत-ज्ञानादि, वे अच्छे नहीं हैं। * सम्यक्त्वरहित जीव वास्तव में पशु समान है; जन्मान्ध की तरह वह धर्म-अधर्म को नहीं जानता है। * दुःखों से भरपूर नरक में भी सम्यक्त्वसहित जीव शोभता है; उससे रहित जीव, देवलोक में भी शोभता नहीं है, क्योंकि वह नरक का जीव तो सारभूत सम्यक्त्व के माहात्म्य के कारण वहाँ से निकलकर लोकालोक प्रकाशक तीर्थनाथ होगा और मिथ्यात्व के कारण भोग में तन्मय उस देव का जीव, आर्तध्यान से मरकर स्थावरयोनि में जायेगा।
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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