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दृष्टि का विषय
मिट्टी में किसी गुण का नाश होता है और कोई गुण उत्पन्न होता है - ऐसी शंका व्यक्त करने पर आचार्य भगवान आगे की गाथा में बतलाते हैं कि - __गाथा १२३ - अन्वयार्थ – ‘इस विषय में यह उत्तर ठीक है कि इस मृतिका का (मिट्टी का पक्का बर्तनरूप होने का) ऐसा होने पर क्या उसका मृतिकापना (मिट्टीपना) नाश हो जाता है? यदि (मृतिकापना) नष्ट नहीं होता तो वह नित्यरूप क्यों नहीं होगा?' अर्थात् इस अपेक्षा से द्रव्य नित्य है, ध्रुव है, अन्यथा नहीं।
__भावार्थ - ‘कच्ची मिट्टी को पकाने पर प्रथम के मिट्टी सम्बन्धी (सभी) गुण नष्ट होकर नवीन पक्व गुण पैदा होता है इस प्रकार माननेवाले के लिए यह उत्तर ठीक है कि - मृतिका की घटादि अवस्था होने पर, क्या उसका पृथ्वीपना-मृतिकापना भी नष्ट हो जाता है? यदि वह मृतिकापना नष्ट नहीं होता तो वह मृतिकापना क्या नित्य नहीं है?' अर्थात् नित्य ही है, इस अपेक्षा से द्रव्य को नित्य-ध्रुव इत्यादि कहा जाता है।
अब शंकाकार शंका करता है कि यदि द्रव्य और पर्याय को सर्वथा भिन्न मानने में क्या दोष है? उत्तर -
गाथा १४२ - अन्वयार्थ - ‘अथवा अनु शब्द का अर्थ है कि- जो बीच में कभी भी स्खलित नहीं होनेवाले प्रवाह से (अनुस्यूति से रचित पर्यायों का प्रवाह, वही द्रव्य) वर्त रहा हो तथा 'अयति' वह क्रियापद गति अर्थवाली 'अय' धातु का रूप है इसलिए अविच्छिन्न प्रवाहरूप से जो गमन कर रहा है वह अन्वयार्थ की अपेक्षा से अन्वय शब्द का अर्थ द्रव्य है।'
___ भावार्थ - '... अर्थात् जो निरन्तर अपनी उत्तरोत्तर होनेवाली पर्यायों में गमन करे, वह द्रव्य है (अर्थात् द्रव्य, पर्यायों में ही छुपा हुआ है)। गति ‘अन्वय' शब्द अनु' उपसर्गपूर्वक गत्यर्थक 'अय' धातु से बना है, द्रव्य की यह व्युत्पत्ति अन्वय शब्द में भलीभाँति घटित हो सकती है। जैसे कि ‘अनु'-अव्युच्छिन्न प्रवाहरूप से जो अपनी प्रतिसमय होनेवाली पर्यायों में बराबर ‘अयति' अर्थात् गमन करता हो, उसे अन्वय कहते हैं; इसलिए अन्वय और द्रव्य ये दोनों पर्यायवाचक शब्द हैं।' अर्थात् पर्यायों का जो प्रवाहरूप समूह है वह ही सत् है और वह ही द्रव्य है। अर्थात् जो पर्यायें हैं, उनमें ही द्रव्य छुपा हुआ गति करता है अर्थात् जो पर्याय है वह द्रव्य की ही बनी हुई है और इसलिए ही पर्यायों को व्यतिरेक विशेष व्यक्त और द्रव्य को अन्वयरूप सामान्य अव्यक्त कहा जाता है।
गाथा १५९ - अन्वयार्थ – 'सारांश यह है कि निश्चय से गुण स्वयंसिद्ध है तथा परिणामी