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________________ ॥ ॐ श्री महावीराय नमः।। लेखक के हृदयोद्गार पंच परमेष्ठी भगवन्तों को नमस्कार करके, शास्त्र और स्वानुभूति के आधार से बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' सम्यग्दर्शन-जो कि मोक्षमार्ग का द्वार है, उसका विषय (दृष्टि का विषय) अर्थात् किसकी भावना भाने से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, वह अर्थात् सम्यग्दर्शन के लिये चिन्तवन-मनन का विषय और उसके स्पष्टीकरण के लिये द्रव्य-गुण-पर्यायमय सत्रूप वस्तु, जो कि उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप भी है, वह और ध्यान, जो कि केवलज्ञान, केवलदर्शन और मुक्ति का कारण है; उसके विषय में विशेष स्पष्टीकरणसहित समझाने का प्रयास हमने इस पुस्तक में किया है। इस काल में द्रव्यानुयोग, जैनधर्म में गौण हो गये निश्चयनय का महत्त्व और दृष्टि के विषय जैसे सूक्ष्म विषय पर प्रकाश डालनेवाले पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी का सर्वजनों पर बहुत बड़ा उपकार है। ___ मुझे छोटी उम्र से ही सत्य की शोध थी और उसके लिए सर्व दर्शन का अभ्यास किया और अन्त में जैनदर्शन के अभ्यास के पश्चात् १९९९ में ३८ वर्ष की उम्र में मुझे सत्य की प्राप्ति हुई, अर्थात् उसका अनुभव/साक्षात्कार हुआ। तत्पश्चात जैन शास्त्रों का पुन:-पुन: स्वाध्याय करने पर अनेक बार सत्य का अर्थात् शुद्धात्मा का अनुभव हुआ, जिसकी विधि इस पुस्तक में शास्त्रों के आधारसहित सर्वजनों के लाभार्थ प्रदान करने का प्रयास किया है। प्रत्येक जैन सम्प्रदाय में सम्यग्दर्शन के सम्बन्ध में तो अनेक पुस्तकें हैं, जिनमें सम्यग्दर्शन के प्रकार, सम्यग्दर्शन के भेद, पाँच लब्धिया, सम्यग्दर्शन के पाँच लक्षण, सम्यग्दर्शन के आठ अंग, सम्यग्दर्शन के पच्चीस मल-इत्यादि विषयों पर विस्तार से वर्णन है, परन्तु उनमें सम्यग्दर्शन के विषय सम्बन्धी चर्चा बहुत ही कम देखने में आती है; इसलिए हमने उस पर प्रस्तुत पुस्तक में थोड़ा प्रकाश डालने का प्रयास किया है। हम किसी भी मत-पंथ में नहीं है; हम मात्र आत्मा में हैं, अर्थात् मात्र आत्मधर्म में ही हैं; इसलिए यहाँ हमने किसी भी मत-पंथ का मण्डन अथवा खण्डन न करके मात्र जो आत्मार्थ उपयोगी है, वही देने की कोशिश की है। इसलिए सर्वजनों को उसे उसी अपेक्षा से समझनाऐसी हमारी विनती है। हमने इस पुस्तक में जो भी बतलाया है, वह शास्त्र के आधार से और अनुभव कर बतलाया है, तथापि किसी को हमारी बात तरंगरूप लगती हो, तो वे इस पुस्तक में बतलाये
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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