SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ xv दृष्टि का विषय पर्याय में माँसाहार ही उसका खाद्य होता है। इस ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं जाता? इसी तरह अंजन चोर को अपने जीवन में प्रथम बार ही तत्त्वज्ञान की उपलब्धि का अवसर प्राप्त हआ और उसने तत्क्षण उसका सदुपयोग करके स्वलक्ष्यी पुरुषार्थ से कल्पतरु सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लिया। हम तो तत्त्वज्ञान का श्रवण-मनन-अध्ययन-चिन्तवन करनेवाले होकर भी अंजन चोर के उदाहरण को अपनी स्वच्छन्दता के लिये कवच के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। हमें अंजन चोर के अप्रतिहत पुरुषार्थ की महिमा आने के बजाय उसके जीवन से यह ग्रहण करने का भाव आवे कि अंजन चोर जैसा व्यक्ति भी जब सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकता है तो हम भी पूरे जीवन अनीति, अन्याय एवं अनाचार जैसे दुर्गुणों से लिप्त रहकर अन्त में सम्यक्त्व प्राप्त कर लेंगे तो यह हमारा दिवास्वप्न ही समझना चाहिए, क्योंकि हमने अनाचारों को जिनवाणी के छल से पोषण किया है जो हमारी मानसिक स्थिति को चित्रित करता है - ऐसी कुटिल भावभूमि में जब तत्त्वविचार का भी अवसर नहीं है तब सम्यक्त्व की प्राप्ति तो कहाँ सम्भव है। सम्यक्त्व के लिये अनिवार्य भावविशुद्धि की चर्चा भी प्रस्तुत पुस्तक में की गयी है। जिसे सभी साधर्मीजनों को जीवन में अपनाने योग्य है। वर्तमान दिगम्बर जैन मुमुक्षु समाज में प्रचलित इस दृष्टि के विषय से सम्बन्धित पर्याप्त प्रमेय आत्मार्थीजनों को इस पुस्तक में सहजरूप से उपलब्ध हो रहा है जिसे एकमात्र आत्महित की दृष्टि से बारम्बार विचार करके आत्मकल्याण के मार्ग में आगे बढ़ना चाहिए। इस महत्वपूर्ण कृति का लेखन, वर्तमान में प्रचलित अनेक भ्रामक धारणाओं के सम्यक् निराकरण की पवित्र भावना से, जिनागम के आलोक में श्रीमान् जयेशभाई सेठ, मुम्बई ने किया है; जो उनके अन्तरंग में व्याप्त जिनशासन की भक्ति को उजागर करता है। यदि आत्मार्थीजन इसे आत्महित की दृष्टि से अध्ययन करेंगे तो उन्हें अनेक समाधान सहज ही इस एक कृति में प्राप्त हो जाएंगे। निश्चित ही श्री जयेशभाई की यह खोजपूर्ण कृति मुमुक्षु जगत के लिए एक ऐसा उपहार है, जिसके आलोक में परमपूज्य वीतरागी सन्तों एवं पूज्य गुरुदेवश्री के हृदय का मर्म समझा जा सकता है। प्रत्येक आत्मार्थी इसका अध्ययन कर अवश्य लाभ ले-ऐसा विनम्र अनुरोध है। इस भावपूर्ण लेखन के लिये भाईश्री जयेशभाई सेठ, मुम्बई प्रशंसा के पात्र हैं एवं इस कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये भाईश्री शैलेषभाई के योगदान को भी नहीं नकारा जा सकता। इन्हीं के सत्प्रयत्नों से यह प्रमेय आप तक पहुँच रहा है। इस पुस्तक में प्रस्तावना के लिये उक्त दोनों साधर्मियों ने मुझे अवसर प्रदान किया इस कारण मुझे भी इस विषय पर गहराई से अध्ययन-मनन एवं चिन्तवन का अवसर सहज ही उपलब्ध हुआ तदर्थ आभारी हूँ। सभी साधर्मी इस पुस्तक का भरपूर लाभ लेंगे - इसी भावना के साथ। बिजौलियां देवेन्द्रकुमार जैन जिला भीलवाड़ा (राज.)
SR No.009386
Book TitleDrushti ka Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh M Sheth
PublisherShailesh P Shah
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy