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________________ चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति . विभिन्न क्षेत्रों में चुम्बक के प्रयोग आज विश्व भर में चुम्बकीय ऊर्जा का उपयोग सभी क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है। कृषि में चुम्बकीय ऊर्जा से प्रभावित पानी का उपयोग करने से अन्य सभी परिस्थितियाँ एक होने के बावजूद उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। निर्माण कार्यों में ऐसे पानी एवं पदार्थों के प्रयोग से निर्माण में काम आने वाली सीमेन्ट, चूना जैसे पदार्थों की ताकत 15 से 20 प्रतिशत बढ़ जाती है। शल्य चिकित्सा के पश्चात् चुम्बकीय ऊर्जा के उपयोग से शरीर की हीलिंग क्षमता बढ़ जाती है। अतः बहुत से देशों में शल्य चिकित्सा के पश्चात् जो रूई, पट्टियें आदि लगाई जाती हैं, वे. चुम्बकीय ऊर्जा से ऊर्जित होती हैं, ताकि घाव जल्दी भर सकें। - वैज्ञानिकों का ऐसा निष्कर्ष है कि चुम्बक का थोड़ा या ज्यादा प्रभाव प्रायः सभी पदार्थों पर पड़ता है। चुम्बक की विशेषता है कि वह किसी भी अवरोधक को पार कर अपना प्रभाव छोड़ने की क्षमता रखता है। जिस प्रकार बेटरी चार्ज करने के पश्चात् पुनः उपयोगी बन जाती है, उसी प्रकार शारीरिक चुम्बकीय प्रभाव को चुम्बकों द्वारा संतुलित एवम् नियन्त्रित किया जा सकता है। चुम्बक का प्रभाव हड्डी जैसे कठोरतम भाग को पार कर सकता है, अतः हड्डी सम्बन्धी दर्द निवारक में चुम्बकीय चिकित्सा रामबाण के तुल्य सिद्ध होती है। ... चुम्बकीय चिकित्सा की विशेषता चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति पूर्णतया वैज्ञानिक एवम् प्राकृतिक नियमों पर • आधारित है। यह सहज, सरल, पीड़ा रहित, पूर्ण अहिंसक, दुष्प्रभावों से रहित और सस्ती है। इसके उपचार हेतु शरीर विज्ञान की विशेष जानकारी आवश्यक नहीं। अन्य चिकित्सा पद्धतियों द्वारा उपचार करने के साथ भी इसको अपनाया जा सकता है। रोगी स्वयं घर बैठे बैठे अपना उपचार कर सकता है, न ज्यादा स्थान चाहिये, न बड़े बड़े खर्चीले अस्पताल अथवा रासायनिक प्रयोगशालायें। स्थायी चुम्बक से अनेक व्यक्तियों का अनेक वर्षों तक उपचार किया जा सकता है। तथा प्रभाव कम 83 .
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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