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________________ होने पर उन चुम्बकों को बैटरी की भांति पुन: चार्ज किया जा सकता हैं। चुम्बक को गिराने, धूप या अग्नि के पास रखने से चुम्बकीय क्षमता क्षीण भी हो जाती है। चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति में किसी भी प्रकार के टी के, दवाई मालिश अथवा गहरे दबाव की आवश्यकता नहीं होती। केवल रोग के अनुसार चुम्बकों को पगथली, हथेली और रोगग्रस्त स्थान पर थोड़े समय के लिये स्पर्श करना पड़ता है। • पथ्य का उतना परहेज नहीं रखना पड़ता; जितना अन्य चिकित्सा पद्धतियों में आवश्यक होता है। रोग मुक्त होने के पश्चात् चुम्बकों का उपयोग छोड़ने में कोई कठिनाई नहीं होती। जैसा कि आजकल चन्द रोगों में दवाई जीवन का आवश्यक अंग बन जाती है। यह पद्धति सभी रोगों के उपचार तथा बचाव दोनों में सक्षम होती . है। रोग की प्रारम्भिक अवस्था में तो इस पद्धति से शीघ्र लाभ पहुंचता ही है, परन्तु अनेक असाध्य रोगों में भी इससे राहत मिलती है। चुम्बक शरीर से पीड़ा दूर करने में बहुत प्रभावशाली है। घावों को शीघ्र भरता है। रक्त संचार ठीक करता है एव हड्डियों को जोड़ने में मदद करता है। - चुम्बकीय चिकित्सा के अनुभूत प्रयोग लेखक के सन् 1990 में ट्रक से दुर्घटनाग्रस्त होने पर कान के नीचे की हड्डी एवं टोढ़ी का फ्रेक्चर हो गया। अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध चिकित्सक माननीय श्री एस के दीवान द्वारा शल्य चिकित्सा की गई। शल्य चिकित्सा के कारण पूरे जबाड़े पर छब्बीस टांके लगें। तीन दिन पश्चात् अस्पताल से छुट्टी मिलने के पश्चात लेखक ने बिना किसी दवा मात्र चुम्बक द्वारा स्वयं का उपचार परिजनों, मित्रों, चिकित्सकों के न चाहते हुये भी किया। चुम्बकीय ऊर्जा के सिद्धान्तों की सत्यता एवं चमत्कारी प्रभाव पर आत्म विश्वास होने के कारण, आधे से कम समय में स्वयं का . उपचार सफलता पूर्वक करने में सफल रहा। इसी कारण लेखक की वैकल्पिक चिकित्साओं की प्रभावशालीता के प्रति आस्था दृढ़ हुई। दो अप्रैल 1991 को पुनः लेखक के दाहिने पैर की हीप्स बोन पर स्कूटर दुर्घटना से पुनः दो इंच की दरार पड़ गई तथा उन्हें भयंकर वेदना होने लगी। चिकित्सकों ने कम से कम 21 दिन बिना हिले डुले आराम करने का परामर्श दिया। परन्तु चुम्बकों के निरन्तर प्रयोग से उनकी पीड़ा तुरन्त शान्त होने लगी। परिणाम स्वरूप लेखक का आत्म विश्वास एवं मनोबल दृढ़ हुआ। परिणाम स्वरूप बिना किसी दर्दनाशक दवा के प्रयोग मात्र 4-5 दिनों के चुम्बकीय उपचार से अपना नियमित कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिया। जीवन की इन दोनों घटनाओं के कारण ही अपने । इंजीनियरिंग व्यवसाय से निवृत्त हो. लेखक ने वैकल्पिक चिकित्साओं के प्रति सजगता पैदा करने का मानस बनाया। चुम्बकीय उपचार का सिद्धान्त एवं विशेषतायें, 84 .
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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