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लगती हैं। आज के तनाव युक्त वातावरण से मुक्त होने के हास्य-योग सरलतम, स्वयं के पास, सभी समय उपलब्ध, सहज, सस्ता साधन है। परन्तु प्रायः देखा जाता है कि हँसने के लिए व्यक्ति बाह्य आलम्ब्नों पर निर्भर रहता है। जो हमारे पास सदैव उपस्थित नहीं होते। चुटकलों के सहारे हम 365 दिन नहीं हँस सकते, क्योंकि नित्य नवीन ज्ञानवर्धक प्रभावशाली चुटकले भी पढ़ने को नहीं मिलते और न ऐसे व्यक्तियों का नियमित सम्पर्क होता है, जो दूसरों को हँसाने में दक्ष होते हैं। आज के सभ्य समाज में अकारणी हँसने वालों की तुलना पागलों अथवा मूों से की जाती है। बिना बात हँसना बहुत कठिन होता है। सबसे बड़ी समस्या अकारण हँसने से लज्जा आती है। अतः व्यक्ति हास्य के लाभ को जानते, मानते हुए भी हँसने का साहस नहीं जुटा पाता। परिणामस्वरूप उसे रोग होने की संभावनाएँ बढ़ती है तथा बीमार होने पर चिकित्सकों की प्रयोगशाला बनने हेतु मजबूर होना पड़ता है। इसी.कारण आज सारे, विश्व में हास्य योग संगठन बनते.जा रहे हैं। जो प्रातःकाल खुले मैदानों अथवा बगीचों में नियमित एकत्रित होकर सामूहिक रूप से कृत्रिम ढंग से हँसते हैं, हँसाते. हैं। हम प्रायः अनुभव करते हैं कि साधारण परिस्थितियों में कभी-कभी सामने वाले को हँसते हुए देख.अकारण ही हँसी स्वतः आने लगती हैं। इसका छूआछूत के रोग की भांति आपस में फैलाव अथवा प्रसार होने लगता है, जिससे समूह में हँसी का सहज माहौल हो जाता है। आजकल समूह में भी हँसने की भी विभिन्न विधियाँ मानव ने विकसित कर ली है।
जो व्यक्ति अट्टहास करने का साहस न जुटा सकें, वे होठ बन्द कर मन ही मन तीव्र गति से हँसने का प्रयास करें। जिससे हास्य योग का लाभ मिल जाता है। कोई भी प्रवृत्ति का सर्वमान्य स्पष्ट मापदण्ड नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यक्ति को स्वविवेक और सवयं की क्षमताओं तथा हँसने से होने वाली प्रतिक्रियाओं का सजगता . पूर्वक ध्यान रख अपने लिए उपयुक्त और आवश्यक विधियों का चयन करना चाहिए.
न कि देखा देखी, सुनी सुनायी, पद्धति के आधार पर किसी के उपहास या मजाक • के रूप में हँसना। किसी की असफलता या नुकसान पर हँसना क्रूर हास्य है। अतः ऐसे हास्य का निषेध है। दूसरों को देख हँसना, कभी-कभी कलह अथवा द्वेष के कारण, कषाय वृद्धि का हेतु बन सकती है। परन्तु अकेले में एकान्त में होठ बन्द कर शान्त हँसी कषाय वृद्धि का कारण भी नहीं होती है। पाँच मिनट हँसने से शरीर को 1 से 2 किलोमीटर प्रातःकाल घूमने जितनी ऊर्जा मिलती है। प्रदूषण रहित स्वच्छ एवं खुले प्राण वायु वाले वातावरण में, प्रातःकाल उदित सूर्य के सामने, हास्य व्यायाम अधिक प्रभावशाली होता है, क्योंकि हास्य लाभ के साथ-साथ सौर ऊर्जा की भी सहज प्राप्ति हो जाती है।
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