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________________ हैं। फलतः पेट के सभी अंग सक्रिय होने लगते है। . इस बंध में नाभि केन्द्र, एड्रीनल एवं पेन्क्रियाज ग्रन्थियां बराबर कार्य करने लगते है। , मूल बंधः- मल द्वारा को ऊपर की तरफ खींचकर संकुचित करने की शारीरिक . स्थिति को मूल बंध कहते है। इस बंध से आंतों और प्रजनन अंगों संबंधी रोगों में लाभ होता हैं। मल-मूत्र के रोगों में भी लाभ होता है। यह भूख को बढ़ता हैं। महाबंध :- जब तीनों बंध एक-साथ किये जाते हैं, शरीर की उस अवस्था को महाबंध कहते हैं। इस हेतु पहले जालन्धर बंध के साथ उड्डियान बंध लगाना चाहिये, उसके पश्चात मूल बंध लगाना चाहिये। श्वास को जितना स्वभाविक, गति से रोक सकें, रोकना चाहिये। फिर पहले मूल बंध उसके पश्चात उड्डियान बंध और अंत में जालन्धर बंध से मुक्त होना चाहिये। उसकी अनेक आवृतियां की जा सकती है। महाबंध से तीनों बंधों का लाभ एक साथ मिल जाता हैं। ... बहुत स्थानों की जलवायु विशेष स्वास्थ्यप्रद होती है। उसके कारण वहाँ प्राण तत्त्व की अधिक उपलब्धता जीवन, चैतन्य, स्फूर्ति, कार्य करने की क्षमता, सहन करने की शक्ति, मानसिक विचक्षणता आदि नाना प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त की जा सकती है, उसे प्राण वायु भी कह दिया जाता है। . प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ होता है-प्राण का आयाम । आयाम का मतलब वृद्धि करना। प्रत्येक योनि में हमें निश्चित श्वासों के खजाने के अनुसार आयुष्य प्राप्त होती है। यदि उन श्वासों का अपव्यय न किया जाये, पूर्ण श्वास–प्रश्वास किया जाये तो उन सीमित श्वासों को लेने में हमें अधिक समय लगेगा अर्थात् हमारी आयु, जीवन अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो प्राणों की वृद्धि हो जायेगी। अतः सम्यक् प्रकार से आवश्यकतानुसार श्वासोच्छंवास प्रक्रिया को श्वासोयाम न कहकर प्राणायाम कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। .. __योग शास्त्रों में प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया गया है। उसमें से चन्द विधियाँ जो हमारे प्रतिदिन के लिए उपयोगी है उनकी संक्षिप्त सैद्धान्तिक जानकारी ही यहां दी जा रही है। जिज्ञासु व्यक्ति अनुभवी योग प्रशिक्षक के सानिध य में प्राणायाम की विविध पद्धतियों का अवश्य विस्तृत अध्ययन एवं अभ्यास करें, क्योंकि प्राणायाम से सरल स्वास्थ्य सुरक्षा की दूसरी स्वावलम्बी विधि प्रायः संभव नहीं होती तथा प्राणायाम के अभाव में सम्पूर्ण स्वास्थ्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्राणायाम की चार. अवस्थाएँ . प्राणायाम में श्वास अन्दर खींचने की प्रक्रिया को पूरक, श्वास बाहर निकालने की क्रिया को रेचक तथा श्वास को अन्दर अथवा बाहर रोकने की अवस्था को कुम्भक कहते हैं। प्राणायाम का मूल सिद्धान्त है श्वास धीरे धीरे परन्तु जितना 76
SR No.009380
Book TitleSwadeshi Chikitsa Swavlambi aur Ahimsak Upchar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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