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प्रवाह बराबर होने लगता है। अंग व्यायाम को उस अंग की यौगिक क्रियाएं भी कहते हैं विभिन्न अंगों के अंग व्यायाम उन्हीं अंगों के स्थानीय कष्टों में विशेष लाभ पहुंचाते ..
हैं। मसाज अथवा मर्दन भी कम गतिशील मांसपेशियों वाले शरीर के भाग में अंग . . . व्यायाम का ही विशेष रूप होता है।
प्राणायाम - शरीर के निश्चित अवधि के लिए आत्मा के रहने योग्य बनाये रहने की क्षमात हेतु जिस तत्त्व की प्रधान भूमिका होती है, उसे प्राण कहते है तथा उसकी ऊर्जा को प्राण ऊर्जा कहते हैं प्राण के आधार पर ही मानव प्राणी. कहलाता है। प्राण सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच का संबंध सूत्र होता है, जो स्थूल शरीर को सूक्ष्म शरीर से जोड़ता है। प्राण ऊर्जा पंच महाभूत तत्त्वों (पृथ्वी, पनी, हवा, अग्नि, आकाश) के साथ मिलकर उन्हें उपयोगी बनाती है। प्राणायाम को प्रभावी बनाने वाले त्रिबंध
ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के अतियोग अथवा दुरूपयोग से शारीरिक ऊर्जा का अपव्यय होता है। अतः आसन, प्राणायाम के साथ कुछ बंधों के प्रयोग से योगाभ्यास किया जाये तो उसक प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। बंध का अर्थ होता है। “बांधना', रोकना या कसना अथवा बंध करना। इसमें शरीर के निश्चित अंगों को बड़ी सतर्कता से संकुचित किया जाता हैं।
_सामान्यतः योग में मुख्य बंध तीन होते है और चौथा इन तीनों का योग. होता हैं। 1. जालन्धर बंध 2. उड्डियान बंध 3. मूल बंध 4. महा बंध . जालन्धर बंध :- ठोड़ी को कंट कूप में स्पर्श करने से होने वाली शरीर की। अवस्था को जालन्धर बंध कहते हैं। इससे गर्दन से गुजरने वाली नाड़ियां नियन्त्रित होती हैं एवं सुषुम्ना स्वर चलने लगता है। कुम्भक कर जालन्धर लगाने से कुम्भक का समय बढ़ाया जा सकता हैं। जालन्धर बंध के समय रेचक और पूरक नहीं करना चाहिये।
जालंधर बंध व्यक्ति को शारीरक, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से लाभदायक होता हैं। इससे मानसिक शिथिलकरण होता हैं और चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। रक्त चाप और श्वसन नियन्त्रित होता हैं। थायरोइड एवं पेरायायारोइड ग्रन्थियां बराबर कार्य करने लगती हैं। उड्डियान बंध :- श्वास को बाहर निकाल कर पेट को कमर की तरफ जितना सिकोड़ सकें. बाह्य कुम्भक करने की स्थिति को उड्डियान बंध कहते हैं। यह बंध खाली पेट ही करना चाहिये। इस क्रिया से आमाशय का सम्पूर्ण भाग स्पंज की भांति निचोड़ा जाता हैं। जिससे जमा अथवा रूका हुआ रक्त पुनः प्रवाहित होने लगता
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