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गहरा लम्बा लिया जा सके लें। श्वास लेते समय पेट पूरा फूल जाना चाहिये । श्वास को जितना ज्यादा देर रोक सकें, अन्दर रोकने का प्रयास करें, ताकि श्वसन द्वारा शरीर में प्रविष्ट प्राण वायु अपना कार्य वापस बाहर निकलने के पूर्व पूर्ण कर सके अर्थात् आक्सीजन का पूरा उपयोग हो सके। श्वास को धीरे धीरे निष्कासित करें । रेचक का समय पूरक से जितना ज्यादा होगा उतना प्राणायाम प्रभावकारी होता है।. कुछ योगियों की ऐसी मान्यता है कि जितना ज्यादा श्वास को अंदर रोक कर रखा जाता है उतनी अधिक शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है, परन्तु यदि दिमाग़ को शांत करना हो तो श्वास को बाहर अधिक रोकने का अभ्यास करना चाहिए।
नाड़ी शुद्धि प्राणायाम
नाड़ी शुद्धि होने के बाद ही प्राणायाम श्रेष्ठ ढंग से किया जा सकता है। नाड़ी शुद्धि के लिये जो प्राणायाम किया जाता है, उसे अनुलोम विलोम प्राणायाम कहा जाता है। जन साधारण को अनुलोम विलोम प्राणायाम से ही प्राणायाम का प्रारम्भ करना चाहिये। इसमें नासाग्र के किसी एक भाग से श्वास अन्दर लेकर दूसरे छिद्र से बाहर निकाला जाता है। यह एक चक्र होता है। ऐसे अनेकों आवर्तनों का अभ्यास किया जा सकता है। श्वास जितना गहरा और दीर्घ होता है, उतना प्राणायाम अच्छा होता है। जितना कुम्भक कर सकें उतना अभ्यास करें। पूरक से रेचक का समय जितना ज्यादा रख सकें उतना अच्छा और कुम्भक का समय भी कम से कम पूरक का दुगना होना चाहिये, तभी नाड़ी शुद्धि सही ढंग से होती है।
कपाल भाति प्राणायाम
कपाल का मतलब खोपड़ी और भांति अर्थात प्रकाशित करना । इसमें शीघ्रता से पूरक और रेचक किया जाता है। कुम्भक नहीं । यह व्यायाम अत्यन्त परिश्रम पूर्वक करना चाहिये। इससे शरीर की सभी कोशिकाएँ, ज्ञान तन्तु और स्नायु जोर से कम्पित होते हैं ।
कपालभाति प्राणायाम से खोपड़ी, श्वसन तंत्र और नासिका मार्ग स्वच्छ. होता है। दमा दूर होता है। बड़ी मात्रा में कार्बनडाई आक्साइड के निष्कासन से रक्त शुद्ध होता है। हृदय की कार्य क्षमता सुधरती है, श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र और रक्त परिभ्रमण तंत्र बराबर कार्य करने लगते है ।
सूर्य भेदी प्राणायाम
इसमें दाहिने नथूने से श्वास ली जाती है और बांये नथूने से श्वास निकाली जाती है। इससे शरीर में गर्मी बढ़ती है, सक्रियता आती है। सर्दी सम्बन्धी रोगों और सर्दी के मौसम में यह प्राणायाम विशेष प्रभावकारी होता है । चन्द्र भेदी प्राणायाम
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