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निरन्तर चलते हुए सूर्य या चन्द्र स्वर के बदलने के सारे उपाय करने . पर भी यदि स्वर न बदले तो रोग असाध्य होता है तथा उस व्यक्ति की मृत्यु समीप होती है। मृत्यु के उक्त लक्षण होने पर भी स्वर परिवर्तन का निरन्तर अभ्यास किया जाये तो मृत्यु को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है।
वैसे तो शरीर में चन्द्र स्वर और सूर्य स्वर चलने की अवधि व्यक्ति की जीवनशैली और साधना पद्धति पर निर्भर करती है। परन्तु जनसाधारण में चन्द्र स्वर और सूर्य स्वर 24 घंटों में बराबर चलना अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होता है। दोनों .. स्वरों में जितना ज्यादा असंतुलन होता है उतना ही व्यक्ति अस्वस्थ अथवा रोगी होता है। संक्रामक और असाध्य रोगों में यह अन्तर काफी बढ़ जाता है।
चिकित्सा में स्वरों की प्रयोग विधी 1. गर्मी सम्बन्धी रोग :- गर्मी, प्यास, बुखार, पित्त सम्बन्धी रोगों में चन्द्र स्वर चलाने से शरीर में शीतलता बढ़ती है, जिससे गर्मी से उत्पन्न अंसंतुलन दूर हो । जाता है। 2. कफ सम्बन्धी रोग :- सर्दी, जुकाम, खांसी, दमा आदि कफ सम्बन्धी रोगों में सूर्य स्वर अधिकाधिक चलाने से शरीर में गर्मी बढ़ती है। सर्दी का प्रभाव दूर होता . है। . 3. आकस्मिक रोग :- जब रोगका कारण समझ में न आये और रोग की असहनीय स्थिति हो, ऐसे समय रोग का उपद्रव होते ही जो स्वर चल रहा है. उसको बन्द कर विपरीत स्वर चलाने से तुरन्त राहत मिलती है। . . . . ... प्रत्येक व्यक्ति को स्वर में होने वाले परिवर्तनों का नियमित आंकलन और समीक्षा करनी चाहिये। दिन-रात 12 घंटे चन्द्र और 12 घंटे सूर्य स्वर चलना संतुलित स्वास्थ्य का सूचक होता है। . .
यदि एक स्वर ज्यादा और दूसरा स्वर कम चले तो शरीर में असंतुलन की स्थिति बनने से रोग होने की संभावना रहती है। हम स्वर के अनुकूल जितनी ज्यादा प्रवृत्तियां करेंगे, उतनी अपनी क्षमताओं का अधिकाधिक लाभ अर्जित कर
सकेंगे।
. स्वरोदय विज्ञान के अनुसार व्यक्तिं प्रातः निद्रा त्यागते समय अपना स्वर देखें। जो स्वर चल रहा है, धरती पर पहले वही पैर रखे। बाहर अथवा यात्रा में - जाते समय पहले वह पैर आगे बढ़ावे, जिस तरफ का स्वर चल रहा है। साक्षात्कार के समय इस प्रकार बैठे की साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति बन्द स्वर की तरफ हो, तो सभी कार्यों में इच्छित सफलता अवश्य मिलती है।
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