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समय जिस नथूने से श्वास प्रवाह होता है, उस समय उस स्वर की प्रमुखता होती है। बांये नथूने से श्वास चलने पर चन्द्र स्वर, दाहिने नथूने से श्वास चलने पर सूर्य स्वर तथा दोनों नथूने से श्वास चलने की स्थिति को सुषुम्ना स्वर का चलना कहते हैं।
स्वर को पहचानने का दूसरा तरीका है कि हम बारी-बारी से एक नथूना . बंद कर दूसरे नथूने से श्वास ले और छोड़ें। जिस नथूने से श्वसन सरलता से होता है, उस समय उससे सम्बन्धित स्वर प्रभावी होता है।
. स्वर बदलने के नियम
अस्वाभाविक अथवा प्रवृत्ति की आवश्यकता के विपरीत स्वर शरीर में अस्वस्थता का सूचक होता है। निम्न विधियों द्वारा स्वर को सरलतापूर्वक कृत्रिम ढंग से.बदला जा सकता है.ताकि हमें जैसा कार्य करना हो उसके अनुरूप स्वर का संचालन कर प्रत्येक कार्य को सम्यक् प्रकार से पूर्ण क्षमता के साथ कर सकें। 1. जो स्वर चलता हो, उस नथूने को अंगुलि से या अन्य किसी विधि द्वारा
-, थोड़ी देर तक दबाये रखने से, विपरीत इच्छित स्वर चलने लगता है। 2. चालू स्वर वाले नथूने से पूरा श्वास ग्रहण कर, बन्द नथूने से श्वास छोड़ने
की क्रिया बार-बार करने से बन्द चलने लगता है। जो स्वर चालू करना हो, शरीर में उसके विपरीत भाग की तरफ करवट लेकर सोने तथा सिर को जमीन से थोड़ा ऊपर रखने से इच्छित स्वर .. चलने लगता है। जिस तरफ का स्वर बंद करना हो, उस तरफ की बगल में दबाव देने से चालू स्वर बंद हो जाता है तथा इसके विपरीत दूसरा स्वर चलने । लगता है। जो स्वर बंद करना हो, उसी तरफ के पैरों पर दबाव देकर, थोड़ा झुक कर उसी तरफ खड़ा रहने से, उस.तरफ का स्वर बन्द हो जाता है। • जो स्वर बंद करना हो, उधर गर्दन को घुमाकर ठोडी पर रखने से कुछ मिनटों में वह स्वर बन्द हो जाता है। . घी अथवा शहद जो भी बराबर पाचन हो सके. पीने से चालू स्वर तुरन्त बन्द हो जाता है। परन्तु साधारण अवस्था में दूध या अन्य तरल पदार्थ पीने से भी स्वर बदली हो जाती है। चलित स्वर में स्वच्छ रूई डालकर नथून में अवरोध उत्पन्न करने से स्वर
बदल जाता है। • 9. . कपाल–भाति और नाड़ी शोधन प्राणायाम से सुषुम्ना स्वर चलने लगता है।