________________
कराना चाहिये, ताकि पेट में भोजन के दबाव से नाभि का स्पन्दन अपने स्थान पर ही केन्द्रित रहे। आजकल दीपक के स्थान पर पंप, आर्गन डेवलेपर अथवा स्तन पम्प : का उपयोग भी किया जाता है। विशेषकर उन रोगियों के लिये जिनके तोंद ज्यादा हो अथवा नाभि का स्पन्दन बहुत गहरा अथवा केन्द्र से बहुत दूर हो । पम्प द्वारा खिंचाव उतना ही देना चाहिये जितना रोगी सहन कर सके।
-- "2. सुबह खाली पेट कमर सीधी करके सीधे लेट जायें। सर्व प्रथम 25-30 बार सीधी एवं उल्टी साइकलिंग का व्यायाम करें। फिर रीढ़ के घुमावदार राजा और रानि आसन 25-30 बार करें। दोनों पैरों को धीरे धीरे ऊपर उठायें तथा 90 डिग्री के कोण पर रखें। फिर सिर को बिना जमीन से उठाएं दोनों पैरों को सीधे रखते हुये धीरे धीरे जमीन पर लाएं। ऐसा उत्तानपादासन पांच छ: बार करें। ऐसा करने से खिसकी हुई धरण अपने स्थान पर आ जाती है।
_____3. सुबह बिना कुछ खाये पीठ बल सीधे लेट जायें। दोनों टखनों तथा घुटनों को साथ साथ रखें। यदि धरण अपने स्थान पर नहीं होती है तो एक पैर का अंगूठा दूसरे पैर के अंगूठे से कुछ बड़ा लगेगा, अर्थात् दोनों अंगूठे बराबर नही होंगे। . जो अंगूठा नीचे हों उसे हाथ से ऊपर की ओर खीचें। दो तीन बार खींचने से दोनों
अँगूठे बराबर हो जायेंगे और धरण अपने स्थान पर आ जायेगी। यदि छोटे पैर को , खिंचना किसी कारण संभव न हो तो पैरों को संतुलन करने की विधि से दोनों पैरों को बराबर करने से नाभि अपने केन्द्र में आ जाती है।
गमियों के दिनों में नाभि पर बर्फ का टुकड़ा रखने से नाभि क्षेत्र में संकोचन होने लगता है और हटी नाभि अपने स्थान पर आ जाती है।
स्वस्थ रहने की कामना रखने वालों को प्रतिदिन नाभि केन्द्र की स्थिति का परीक्षण कर लेना चाहिये। यदि नाभि केन्द्र अपने स्थान से विचलित हो गया हो तो प्रमाद छोड़ उसको केन्द्र में लाने का प्रयास करना चाहिये। जो व्यक्ति अपने नाभि केन्द्र के बारे में पूर्ण सजग रहते हैं, उन्हें जीवन में कोई असाध्य रोग नहीं होता।
.....
.
26