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________________ है क्योंकि जिस प्रकार मसीन द्वारा तिलसे तेल निकाला जाता है। तेल अनेक द्रव्यों से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा निकाला जाता है। जैसे-जौ कातेल, गेहू का तेल, वरे का तेल आदि इनसे या जिन द्रव्यों में स्नेहाशं अल्प मात्रा में होता है उससे पाताल यन्त्र द्वारा तेल निकाला जाता है वह भी स्निग्ध होता है । इसलिए उन्हें भी तेल कहते है। उसे डढूवा शब्द से कहा जाता है। मुख्य तेल त्वग्दोष कृत होता है इसका तात्पर्य त्वचा के दोषों को दूर करता है यहाँ डुक्रिय करणे धातु का प्रयोग न समझ कर कृति छेदने धातु का कृत यह शब्द मानना चाहिए। अथवा भक्षण से तेल त्वचाओं में दोष उत्पन्न करता है और मालिश करने से त्वचा के दोषों को दूर करता है। तेल ण्यायावी अर्थात् शीघ्र ही शरीर में फैलकर अपना गुण दोष करने वाला होता है। यह सुक्ष्म होता है इसलिए सूक्ष्म रोम कूपों में शीघ्र ही प्रवेश कर जाता है। यह कफ को नहीं बढ़ाता है इसका तात्पर्य यह कि स्निग्ध और उष्ण होते हुये न कफ को बढ़ाता है और न कम करता है अर्थात समान मात्रा में बनाये रखता ह कृशानां बृंहणायालं स्थूलानां कर्शनाय च। वद्धविट्कंकृमिघ्नं च संस्कारात्सर्वरोगजित् ।। अर्थः तेल कृश व्यक्तियों के लिए वृहण कार्य में तथा स्थूल व्यक्तियों के लिए । कर्षण क्रिया करने में पूर्ण समर्थ होता है। अन्तः प्रयोग से मल को बांधता है और कृमिरोग को दूर करता है और जिस प्रकार के द्रव्यों से इसका संस्कार किया जाता है तो वह द्रव्य के गुण के अनुसार सभी रोगों को दूर करता है। विश्लेषण : एक ही तेल के सेवन से कृश व्यक्ति मोटे और मोटे व्यक्ति कृश होते है। यह समझने में विपरीत प्रतीत होता है अतः इसे इस रूप में समझना चाहिए। कृश व्यक्तियों में वाय के बढ़ जाने से स्रोत शुष्क हो जाते है उनमें धातुओं का गमना गमन यथार्थ में न होने से मांस धातु की विशेष रूप से पुष्टि नहीं होती है तेल का मर्दन या अन्तः प्रयोग करने से बह सूक्ष्म गुण युक्त होने से अन्त प्रवेश कर अपने स्निग्ध गुण के कारण सूखे हुए श्रोतों से वायु को दूर करते हुये स्निग्ध बनाता है। श्रोतों का मार्ग खुल जाता है फलस्वरूप धातुओं का गमनागमन के समुचित होने से मांस पेशियां स्निग्ध एवं बलवान हो जाती है अतः कृश व्यक्ति मोटा हो जाता है। स्थूल व्यक्तियों में कफ की अधिकता और पाचन की दुर्बलता के कारण बढ़ा हुआ कफ श्रोतो को अवरूद्ध कर देते है जिससे धातुओं का गमनागमन अवरूद्ध होकर केवल मेदा धातु की वृद्धि होती है। अतः मनुष्य मोटा हो जाता है। तेल अपने सूक्ष्म गुणों के कारण श्रोतो में प्रवेश कर जाता 77
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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