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________________ निर्मित होता है, अतः वह उष्ण होता है, विष उष्ण द्रव्य के संयोग से या उष्ण करने पर या गर्मी से पीड़ित होने पर अपना वेग तीव्र रूप में प्रकट करता है। इसलिए उष्ण मधु का निषेध किया गया है। किन्तु वमन और निरूह द्रव्यों में मधु मिलाकर उसे गरम किया जाता है, पीने पर वह शीघ्र ही बाहर निकल जाता है, शरीर के . भीतर वह रूकता नही है इस लिए उसका पाचन भी नहीं होता कोई भी द्रव्य पाचन होने पर ही हानि या लाभ करते है यहां मधु में विषका सम्बन्ध न दिखाते हुए केवल उष्ण वस्तुओं के संयोग से उसके सेवन का निषेध किया गया है। अष्टाङ संग्रह में विषके सम्बन्ध का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, यथाविषान्वयेन विष पुष्पेभ्योऽ यतो मधु कुर्वते ते स्वयं यच्च सवियाम्रमरादयः। गुरू रूक्षे कवायत्वात् शैत्याच्चाल्पं हितंमधु । नहि कश्टतमं किवितदजीर्णाद्यतो नरम्। उपक्रम विरोधित्वात् सद्योहन्यात् यथा विशम्। अर्थ : अर्थात् विष पुष्पों द्वारा भी मधु निर्भित होता है। और यदि मधुसेवन से अजीर्ण हो जाय तो उपक्रम विरोधि होने से विषके समान शीघ्र ही मृत्यु कारक होता है। अर्थात् अजीर्ण जन्य मधु का विष शरीर में उत्पन्न हो जाता है तो विष के शमन के लिए शीत पोर्यः द्रव्यों का प्रयोग होता है। यदि शीत वीर्य का प्रयोग किया जाय तो अग्निमन्द हो जाती है और अग्नि को तीव्र करने के लिए उष्ण द्रव्यों का प्रयोग किया जाय तो विषकी वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार शीत और उष्ण ये दो वीर्य वाली ही औषधियां होती है दोनों का प्रयोग ऐसी अवस्था में करना हानिकारक होता है अतः इसे विरूद्धोपक्र कहा गया है। अथ तैलवर्गः। तैलं स्वयोनिवतत्र मुख्यं तीक्ष्णं व्यवायिच। त्वग्दोषकृदक्षुश्यं सूक्ष्मोष्णं कफकन्न च।। अर्थ : तैल विभिन्न तिल, सरसों, तिसी आदि अनेक द्रव्यों से निकाला जाता है। तिल आदि अनेक द्रव्यों से निकाला जाता है। तिल आदि द्रव्यों के जो गुण होते है वे उन तैलों में भी पाये जाते है। अर्थात् योनि (कारण) के अनुसार ही कार्य तेल होते हैं। उनमें मुख्य तिल का तेल होता है। वह तीक्ष्ण, व्यवायी, त्वचा के दोषों को दूर करने वाला नेत्र के लिए हानिकर, सूक्ष्म, उष्ण और कफ को नहीं बढ़ाता है। विश्लेषण : तैल शब्द की व्युत्पत्ति करते हुये 'तिलेषु तैलम्' अथवा तिलेभवः तैलम् यह की जाती है। इससे यह स्पष्ट है कि तिल का ही तेल होता है, इसलिए जहाँ-जहाँ तेल का निर्देश किया गया है वहाँ पर तिल का ही तेल लिया जाता है। सरसों आदि के स्नेह में उपचारात तैल शब्द का प्रयोग होता 76
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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