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विश्लेषण : जैसे नोकर अपने मालिक का कार्य सहायता उसको बल देते हुये अपना कार्य भी सम्पादन करता है। इसी प्रकार मिलने वाले द्रव्यों के शक्ति और गुण को बढ़ाते हुये अपना कार्य भी करता रहता है। किन्तु उसके गुणों के विपरीत अपने गुणों के द्वारा कुछ कार्य नहीं करता है। जैसे-हरडे ओर मधु एक साथ खाया जाय तो वह विरेचन को ही कराती है किन्तु अपने कषाय मधुर रूक्ष गुणों के कारण विरेचन को रोकती नहीं है। तथा मदन फल क्वाथ में मधु मिलाकर पीने से वह वमन ही कराता है किन्तु वमन को रोकता नहीं है। जो द्रव्य योगवाही नहीं होते हैं वे अपने गुण से विभिन्न द्रव्यों से संयुक्त होते है तो साथ ही शरीर में अपने अपने गुणों को प्रकट करते हैं। जैसे- मदन फल और त्रिवृत दोनों का एक साथ प्रयोग किया जाय तो मदन फल वमन और त्रिवत विरेचन यह दोनों एक साथ में करता है। परन्तु जो योगवाही द्रव्य होते हैं वे अपने से विभिन्न गुण वाले के साथ प्रयुक्त होने पर भी विरूद्ध गुण द्रव्य का ही कार्य करते हैं। योगवाही द्रव्यों में वायु को भी माना गया है जैसा कि
. योगवाह परं वायु संयोगदुमयार्थ कृत्।।
उष्णकृत् तेजसा युक्त शीतकुल सोमसंश्रयात् ।। अर्थ : यद्यपि रूक्ष, लघु, खर, सूक्ष्म, चल गुण युक्त वायु तेज से अर्थात् सूर्य के ताप से संयुक्त होने पर उष्णता को बढ़ाता है परन्तु अपना सूक्ष्म, लघु, खर आदि गुणों की छोड़ता नहीं है अर्थात् उस उष्णता में रूक्षता लघुता आदि गुण वर्तमान ही रहता है। अपने शीत गुणों के कारण उष्णता में बाधक नहीं होता इसी प्रकार शीतल जल के संसर्ग पर वह शीतता को बढ़ाता है। किन्तु अपने रूक्षता के कारण शीत का उवरोध नहीं करता है। अतः योगवाही का अर्थ यही किया जाता है जो अपने गुणों के कारण संयुक्त होने वाले द्रव्यों के गुणों का अवरोध न करते हुये उसको बढ़ाता है किन्तु अपने गुणों को छोड़ता नहीं है। यदि अपने गुण को छोड़ देगा तो उसका प्रयोग ही व्यर्थ हो जायगा।
उष्णमुष्णार्तमुष्णेचयुक्तं चोष्णैनिहन्ति तत्। प्रच्छंदने निरूहे च मधूष्णं न निर्वायते।
अलब्धपाकमाश्वेव तयोर्पस्मान्निवर्तते।। अर्थ : उष्ण मधु का सेवन निषेध-अग्नि पर गरम किया हुआ मधु, अग्नि या धूप में चलने से जिनका शरीर गर्मी से पीड़ित है। उन्हें, उष्ण काल (गर्मी के दिनों) में तथा उष्ण वीर्य वाले अथवा अग्नि से उष्ण द्रव्यों के साथ मधु का सेवन नहीं करना चाहिए, किन्तु वमन या निरूहवस्ति में उष्ण मधु का प्रयोग वर्जित नहीं है। क्योंकि वमन और निरूह में मधु शरीर के अन्दर बिना पचे हुये शीघ्र ही निकल जाता है। . विश्लेषण : मधु विभिन्न प्रकार के पुष्प रसों एवं विषैले पुष्पो के रस से भी
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