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________________ I 'स्वादु पाक्यर्द्र मरिचं गुरु श्लेष्मप्रसेकि च' से गीले मरिच को स्वादु पाकी माना है जो मधुर पाकी होगी वह न अधिक उष्ण होगी न अधिक पित्त को बढ़ायेगी। आगे गीली और सूखी दोनों प्रकार के पिप्पली का गुण निर्देश किया है । और मरिच का बल सूखे का ही गुण बताया है । यद्यपि गीली पीपल से सूखी पीपल में गुण की भिन्नता बताई है । तथापि कुछ गुणों में समानता रहती ही है। सूखी पीपल रस में कटु और वीर्य में उष्ण होती है । किन्तु विपाक में मधुर होने से विभिन्न पित्त विकारों में अथवा शुक्रादि दोष में लाभकर होती है इस पर सुश्रुत में" कटुका पिप्ली पितं शमर्यात शीत वीर्यत्वात् से आर्द्र पीपल को कटु नहीं माना है । परन्तु उसे मधुर माना है । वीर्य में शीत माना है। रसो विपाकस्तौ वीर्यं प्रभावस्तान् व्यपोहति' के सिद्धान्त से शीत वीर्य पित शामक होता है । इसी प्रकार उष्ण पीपल कटु होते हुए स्वादु विपाक से पित्त शामक होती है। तात्पर्य यह है कि पीपल वात पित्त-कफ, इन तीनों दोषों को शान्त करती है । फिर भी पिप्पली का अधिक प्रयोग चरक ने निषेध किया है उन्होंने बताया है। "पिप्पल्यों हि कटुका सत्यो मधुरा विपाकाः गुर्य्यो नात्यर्थ स्निग्धोष्णप्रक्लेदिन्यो भेषजश्चाभीमताश्च साः शुभाशुभकारिण्यौ भ्ज्ञवन्तयापातभद्राः प्रयोग समासादगुण्याद् दोष सैच्यानुबद्धाः सतत- मुपयुज्यमाना हि गुरु प्रक्लेदित्वात् श्लेष्माणमुत्क्लेशयन्ति । औष्ण्यात् पित्तं न च वात प्रशमाय उपकल्पन्ते अल्पस्नेहोष्णभावात् योगवाहिन्यस्तु खलु भवन्ति तस्मात् पिप्लीनात्युपयूज्जीत । तद्वदार्द्रकर्मतच्च त्रयं त्रिकटुकं जयेत् । स्थौल्याग्निसदश्वासकासश्लीपदपीनसान् । । अर्थ : अदरक का गुण - शुण्ठी में जो गुण पाये जाते हैं वे सभी गुण अदरक पाये जाते हैं । किन्तु शुण्डी अदरक से विशेष लघु होती है इस प्रकार मरिच, पीपल और सौंठ इन तीनों को त्रिकटु कहा जाता है । यह मोटापा, अग्नि की मन्दता, श्वास, कास श्लीपद और पीनस रोग को दूर करता है । चविकापिप्पलीमूलं मरिचाल्पान्तरं गुणैः । चित्रकोऽग्निसमः पाके शोफार्शः कृमिकुष्ठहा । अर्थ : चव्य और पिप्पली मूल का गुण - यह दोनों मरिच से गुण में कुछ हीन होते . हैं। अर्थात् रस विपाक में कटु कफ नाशक, लघु और उष्ण वीर्य होते हैं। चित्रका का गुण - यह विपाक में अग्नि के समान अर्थात् अत्यन्त 126
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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