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________________ त्रिफला रसायन द्रव्यों में श्रेष्ठ, नेत्र रोगों को नाश करने वाला, व्रणों को भरने वाला, त्वचा के रोग, कुण्ठ आदि को दूर करने वाला, व्रणों के क्लेद को नष्ट करने वाला एवं मेदा प्रमेह कफ और रक्त विकार को दूर करने वाला होता है। सकेसरं चतुजतिं त्वकपत्रैलं त्रिजातकम्। . पित्तप्रकोपि तीक्ष्णोष्णं रूक्ष रोचनदीपनम्।। अर्थ : त्रिजातक और चतुर्जातक के गुण-दालचीनी तेजपत्ता और छोटी इलाइची इन तीन का नाम त्रिजातक है और यदि इनमें नाग केशर मिला दिया जाए तो इसे चतुजतिक कहते हैं। यह दोनों वर्ग पित्त प्रकोपक तीक्ष्ण रूक्ष अग्नि दीपक और भोजन में रूचि उत्पन्न करते वाले हैं। रसे पाके च कटुकं कफघ्नं मरिचं लघु। श्लेष्मला स्वादु शीताऽऽर्द्रा गुर्वी स्निग्धा च पिप्पली। सा शुष्का विपरीताऽतः स्निग्धा वृष्या रसे कट।। स्वादुपाकाऽनिलश्लेष्मश्वासकासापहा सरा।। न तामत्युपयुज्जीत रसायनविधिं विना। नागरं दीपनं वृष्यं ग्राहि हृद्यं विबन्धनुत्।। • रूच्यं लघ स्वादुपाकं स्निग्धोष्णं कफवातजित् ।। मरिच पीपल और सोंठ का गुणमरिच-यह रस और वियाक में कटु कफ नाशक और लघु होती है। पीपल-गीली पीपल कफवर्धक, रस में मधुर, वीर्य में शीत, गुरू और स्निग्ध होती है। सूखी पीपल-यह गीली पीपल के गुणों से विपरीत अर्थात वीर्य में उष्ण कफ नाशक रस में कटु वृष्य स्निग्ध विपाक में मधुर वात विकार कफ विकार श्वास कास नाशक एवं सारक है। इन गुणों से युक्त होने पर भी रसायन विधि को छोड़कर इसका अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए। सोंठह-यह अग्नि दीपक वृव्य ग्राही हृदय के लिए हितकारी और विवन्ध को दूर करती है। भोजन में रूचि उत्पादक लघु विपाक मे मधुर स्निग्ध वीर्य में उष्ण एवं कफ और वायु को नष्ट करने वाली होती है। विश्लेषण : यहां सूखे मरिच का गुण बताया गया है अन्यत्र मरिच का गुण रोचनं दीपनं छेदि सुगन्धि कफ वात नुत। लात्युष्णं कटुकं तीक्ष्णं भरिचं नाऽति पित्तलम् ।। बताया है और मरिच को न अधिक उष्ण और न अधिक पित्त कारक निर्देश किया है यह गीले मरिच का गुण प्रतीत होता है। क्योंकि सुश्रुत ने 125
SR No.009376
Book TitleSwadeshi Chikitsa Part 01 Dincharya Rutucharya ke Aadhar Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajiv Dikshit
PublisherSwadeshi Prakashan
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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