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उष्ण होता है। अथवा पाचन क्रिया में अग्नि के समान कार्य करता है। तथा शोथ अर्श क्रिमि और कुष्ठ रोग को दूर करता है।
पच्चकोलकमेतच्च मरिचेन विना स्मृतम्।
गुल्मप्लीहोदरानाहशूलध्नं दीपनं परम्। . अर्थ : पंचकोल का गुण-पीपल, पिपरामूल चव्य, चित्रक और सोंठ इन पाँचों
का नाम पच्चकोल होता है। इसमें मरिच की गणना नहीं की जाती है। यह गुल्म प्लीहा, उदर रोग, आनाह और शूल रोग को नष्ट करता है। तथा उत्तम रूप से अग्नि दीपक है :
बिल्वकाश्मर्यतर्कारीपाटलाटिण्टुकर्महत्।
_जयेत्कषायतिक्तोष्णं पच्चमुलं कफानिलौ। अर्थ : महत्पच्चमूल का गुण–विल्व (कच्चे वेल की गुद्दी) गम्हार की छाल अरणी (गनियार) पाटला, सोनापाठा इन पाँचो का नाम महत्पच्चमूल है। यह रस में कषाय तिक्त और वीर्य में उष्ण एवं कफ और वायु को दूर करता है।
. हृस्वं बृहत्यंशुमतीद्वयगोक्षुरकैः स्मृतम्।
स्वादुपाकरसं नातिशीतोष्णं सवैदोषजित्।। अर्थ : लघु पंचमूल का गुण-भटकटैया, बनभंटा, अंशुमतीद्वय शालपर्णी, पृश्निपर्णी (सरिवन, पिठिवन) और गोखरू इन पाँच द्रव्यों का नाम लघुपंचमूल कहा जाता है। यह रस और विपाक में मधुर तथा न अधिक शीत, न अधिक उष्ण अर्थात् अनुष्णाशीत होता है। और वात पित्त कफ इन तीनों दोषों को दूर करता है।
बलापुनर्नवैरण्डशूर्पपर्णीद्वयेन तु ।।
मध्यमं कफवातघ्नं नातिपित्तकरं सरम् ।। अर्थ : मध्यम पच्मूल का गुण-वला, (वरियार) पुनर्नवा (गदहपुरना) एरण्ड मूल का छाल शूर्पपर्णीद्वय, मुद्गपर्णी और माषपणी इन पाँच द्रव्यों का नाम मध्यम पच्चमूल है। यह कफ वात नाशक अधिक रूप में पित्त को नहीं बढ़ाता है। अर्थात् पित्त को सम रखते हुए कफ और वात नाशक एवं सारक है।
अभीरूवीराजीवन्तीजीवकर्षभकैः स्मृतम्।।
जीवनाख्यं तु चक्षुष्यं वृष्यं पित्तानिलापहम् । अर्थ : जीवन पच्चमूल-अभीरू (शतावर) वीरा (काकोली) जीवन्ती, जीवक, ऋषमक इन पाँच द्रव्यों का नाम जीवन पच्चमूल कहते हैं। यह नेत्रहितकारी, वाजीकर, पित्त एवं वायु को दूर करने वाला है।
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