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________________ और न अचेतन में होते हैं। ये चेतन और अचेतन के संयोग से उत्पन्न होते हैं हम जितने भी प्राणी हैं, वे सब चेतन (आत्मा) और अचेतन (जड़ शरीर) की संयोग अवस्था में हैं। वैदिक दर्शन के अनुसार प्राण चेतना का. वाहन है। चेतना की. अभिव्यक्ति इस ब्रह्माण्ड में असंख्य जीवन रूपों के रूप में अभिव्यक्त होती है। प्राण के बिना यह अभिव्यक्ति असम्भव है। आधुनिक विज्ञान भी प्राण को विशेष प्रकार की ऊर्जा के रूप में स्वीकारने लगा है। प्राण जीवन का सक्रिय, गतिशील एवं क्रियाशील . पक्ष है। प्राण ऊर्जा का परिवार . जीवित शरीर में एक ही प्रकार की प्राण ऊर्जा का ब्रह्माण्ड से प्रवाह होता है। यह प्राण ऊर्जा स्थूल शरीर से जुड़कर अलग-अलग कार्य करती है। कार्यभेद के आधार पर प्राणों को दस भागों में विभाजित किया गया है। कानों के द्वारा शब्दों को ग्रहण करने एवं सुनने हेतू आवश्यक चैतन्य ऊर्जा को श्रोतेन्द्रिय प्राण कहते हैं। .. आँखों के द्वारा देखने की चैतन्य ऊर्जा को चक्षु इन्द्रिय प्राण, जीभ के द्वारा स्वाद . . . पहचानने की प्राण ऊर्जा को रसनेन्द्रिय प्राण, पदार्थ में रहे हुए कोमल, कठोर, गरम, . ठण्डा, हलका, भारी आदि स्पर्शों का ज्ञान कराने वाली चेतना की ऊर्जा को स्पर्श . इन्द्रिय प्राण कहते हैं। मन की सहायता से चिन्तन, मनन की प्राण ऊर्जा को मनोबल प्राण, शरीर के द्वारा उठने, बैठने, हलन चलन करने की शक्ति को कार्यबल प्राण, श्वासोच्छवास वर्गणा के पुद्गलों की सहायता से श्वास लेने एवं निकालने की चैतन्य • ऊर्जा को श्वासोच्छवास बल प्राण कहते हैं। निश्चित समय तक निश्चिम भव में जिवित रहने की चेतना की शक्ति को आयुष्य बल प्राण कहते हैं। आयुष्य बल प्राण सभी प्राणों में मुख्य होता है। श्वास की तुलना गाड़ी में पेट्रोल के समान है तो आयुष्य . . . का महत्त्व वाहन चालक के समान होता है। प्रत्येक प्राण में अपने अपने विषयों को ..... ग्रहण करने एवं अभिव्यक्त करने की शक्ति होती है। मन शरीर के सभी प्राणों को अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है। ये सभी प्राण ऊर्जाएँ शरीर के विभिन्न अंगों, माँसपेशियों, स्नायुओं आदि तंत्रों को कार्य करने की क्षमता प्रदान करती है जिससे शरीर में आवश्यक ताप नियंत्रण, रक्त परिभ्रमण एवं अन्य क्रियाएं संचालित हो तथा मस्तिष्क से सम्बन्ध बनाएँ रखने हेतु उनकी सहायता करती है। इसके अभाव में स्थूल शरीर और मस्तिष्क अपना कार्य नहीं कर सकता। आधुनिक विज्ञान प्रायः इन ऊर्जाओं तथा इनके आपसी सम्बन्धों के अध्ययन तक ही सीमित है। . आयुष्य प्राण की प्रधानता जिस प्रकार प्रधान मंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों का अलग-अलग दायित्व होता है। प्रधान मंत्री के त्यागपत्र देने अथवा पद से मुक्त होने के पश्चात् जैसे अन्य मंत्रियों का मंत्री पद स्वतः ही समाप्त हो जाता है। ठीक उसी . - 71 ..
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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