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________________ के भाषा पर्याप्त नहीं होती, वे जीव मुँह, होते हुए भी बोल नहीं सकते । इसी प्रकार मन पर्याप्ति के प्रभाव से मनुष्य का जीव मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर द्रव्य मन की सहायता से चिन्तन-मनन कर सकता हैं। जिन जीवों में मन पर्याप्ति का अभाव होता है, वे जीव मनुष्य की भाँति चिन्तन, मनन, कल्पनाएँ, इच्छाएँ, स्मृतियाँ, अध्ययन आदि नहीं कर सकते। उपचार अथवा रोग का निदान करते समय जब तक चेतना के विकास एवं उसको प्रभावित करने वाले विभिन्न कर्म बन्धनों के कारणों की उपेक्षा होगी, निदान अपूर्ण और उपचार अस्थायी होगा। प्राण क्या है ? जीवन जीने की शक्ति को प्राण कहते हैं। जिसके संयोग से प्राणी जीवित रहता है तथा वियोग से मरण अवस्था को प्राप्त हो जाता है। प्राण जीव का बाह्य लक्षण हैं। जिससे जीवित प्राणियों की प्रतीति होती है। प्राण और पर्याप्ति में भेद और संबंध प्राण जीव की शक्ति होती है और पर्याप्ति जीव द्वारा ग्रहण किए हुए पुद्गलों की शक्ति होती है। प्राण कार्य है तो पर्याप्ति उसके लिए सहायक ऊर्जा । आत्मा की जितनी भी मानसिक, वाचिक और काया सम्बन्धी प्रवृत्तियाँ होती हैं, वे सब द्रव्य पुद्गलों की सहायता से ही होती है। वायुयान बिना पेट्रोल आकाश में उड़ नहीं सकता। उसी प्रकार सभी प्रवृत्तियों का कर्ता अदृश्य VKREK GKSRH है और जब तक उसका शरीर से सम्बन्ध रहता है, तभी तक सभी शारीरिक क्रियाएँ होती है । इन क्रियाओं का सम्पादन करने वाली शक्ति को प्राण अथवा जीवनी शक्ति कहते हैं। पर्याप्तियाँ शक्ति स्रोत हैं और प्राण शक्ति केन्द्र है। इनमें परस्पर कार्य कारण प्राण उनके का भाव प्रतीत होता है। शक्ति स्रोत कारण है और शक्ति केन्द्र रूपी कार्य हैं । प्राण और पर्याप्तियों की उपलब्धता पर ही हमारा स्वास्थ्य मुख्य रूप से निर्भर रहता है। दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध होता हैं। : पर्याप्तियाँ (शक्ति स्रोत) आहार पर्याप्त शरीर पर्याप्ति इन्द्रिय पर्याप्ति प्राण (श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय) श्वासोच्छवास पर्याप्ति प्राण ( शक्ति केन्द्र) आयुष्य प्राण कायबल प्राण इन्द्रिय श्वासोच्छवास प्राण भाषा पर्याप्त वचन बल प्राण मनः पर्याप्ति मनोबल प्राण ये शक्ति स्रोत और शक्ति केन्द्र न तो आत्मा की शुद्धावस्था में होते हैं. 70 }
SR No.009375
Book TitleSwadeshi Chikitsa Aapka Swasthya Aapke Hath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherSwaraj Prakashan Samuh
Publication Year2004
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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