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प्राकर आयुष्य के समाप्त होते ही सभी प्राणों का अस्तित्व स्वत: ही समाप्त हो जाता । है। प्रत्येक मनुष्य की आयुष्य का निर्धारण उसके पूर्व भव में ही आयुष्य कर्म का । बन्ध होते ही निश्चित हो जाता है। आयुष्य का मापदण्ड श्वासों से होता है। जो प्रत्येक मनुष्य में अलग-अलग होता है। श्वासों की गति को नियंत्रित कर प्रायः आयुष्य की वर्तमान में प्रचलित काल अवधि को नियतिनुसार घटाया अथवा बढाया जा सकता है। अन्य कर्मों की स्थिति बदल सकती है, परन्तु आयुष्य कर्म को बदलना साधारणतया असम्भव होता है। वर्तमान शरीर विज्ञान के अनुसार तो मस्तिष्क, हृदय
और फेंफड़ों का कार्य संचालन बन्द हो जाना मृत्यु होता है परन्तु इस सिद्धान्त के . . विपरीत ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जो समधि की अवस्था में बिना श्वास और
हृदय की गति भी मानव कई दिनों तक जीवित रह सकता है। यह सम्भव है। जब तक आयुष्य प्राण क्रियाशील रहता है व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो सकती। उसके समाप्त हो जाने के पश्चात् समस्त क्रियाएँ सम्पूर्ण रूप से बन्द हो जाती है, जिसे मृत्यु कहा जाता है।
... आयुष्य पूर्व निर्धारित होती है।
- क्योंकि आगामी जन्म की आयु वर्तमान जन्म में ही निश्चित हो जाती है, अतः आयुष्य बन्ध के समय परिणाम मन्द हों, तो आयु का बन्ध शिथिल होता है। . शिथिल बन्ध वाली आयु दुर्घटना अथवा मरणांतिक योग मिलने पर अपनी नियत काल मर्यादा समाप्त होने के पहले ही अन्तर्मुहूर्त मात्र में भोग ली जाती है। आयु ..
के इस प्रकार शीघ्र भोग को अकाल अथवा अस्वाभाविक मृत्यु कहते हैं। इसके " · विपरीत आयुष्य बन्ध के समय भाव अथवा परिणाम तीव्र हों, तो आयु का बन्ध भी प्रगाढ़ होता है। जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु का निमित्त मिलने के बावजूद बन्धी हुआ आयुष्य घटता नहीं।
. यदि दो समान वस्त्रों को पानी में गीला कर, एक को फैलाकर और दूसरे को समेट कर सुखाया जाए तो पहला कपड़ा जल्दी सूख जाएगा और दूसरा बहूत देर से। पानी का परिमाण और कपड़े की शोषण क्रिया समान होने पर भी कपड़े के संकोच और फैलाव के कारण कपड़े के सूखने में कम और ज्यादा समय लगता है। जैसे घास के बारीक चूरे के सघन ढेर में एक तरफ से छोटी सी चिनगारी छोड़ दी जाए तो वह चिनगारी धीरे-धीरे क्रमशः उस सारे चूरे को जलाने में काफी समय लगा सकती है, परन्तु वही चिनगारी घास के शिथिल ढेर पर छोड़ दी जाए तो कुछ ही क्षणों में वह समूची घास जला देती है। उसी प्रकार अकाल मृत्यु के समय शेष आयु शीघ्र भोग ली जाती है, परन्तु आयुष्य को पूरा भोगे बिना मृत्यु नहीं हो सकती।
हमारा शरीर श्वासोच्छवास क्रिया में सहयोगी होता है। किसी दुर्घटना के समय व्यक्ति तड़पता है, छटपटाता है। उस समय यदि ध्यान से देखें तो शरीर के
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