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________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर किन्तु नपुंसक उन दोनों में ही उदासीन रहता है। मंत्रों के भेद व लक्षण १. अक्षर संख्या की अपेक्षा- (१) मंत्र के तीन भेद हैं- बीजमंत्र, मंत्र और मालामंत्र। एक अक्षर से लगाकर नौ अक्षर तक के मंत्र को बीजमंत्र कहते हैं। दस अक्षर से बीस अक्षर तक के मंत्र को 'मंत्र' और बीस अक्षर से अधिक वालों को माला मंत्र कहते हैं। (२) बीज मंत्र सदा ही सिद्ध हो जाते हैं और सदा ही फल देते हैं। मंत्र वाले मंत्र, मंत्री (साधक)को यौवनावस्था में ही फल देते हैं। मालामंत्र वृद्धावस्था में फल देते हैं। (३) प्रकारान्तर से-सोलह अक्षरों तक माला मंत्र और उससे आगे कल्प कहलाते हैं। कल्प इस लोक और परलोक दोनों स्थान में फल देते हैं। २. लिंग की अपेक्षा लिंग की दृष्टि से मंत्र के तीन भेद हैं- स्त्री, पुरुष और नपुंसक। जिन मंत्रों के अंत में 'श्री व स्वाहा' शब्द होता है वह स्त्रीमंत्र कहलाते हैं। हूं, वषट्, फट् घे तथा स्वधा आदि पल्लव जिनमें होते हैं वे पुल्लिंगी मंत्र हैं और नमः अंत वाले मंत्र नपुंसक होते हैं। स्त्रीमंत्रों का प्रयोग पाप नष्ट करने में, पुरुष मंत्रों का उपयोग शुभ कर्म, मारण, उच्चाटन, निर्वषीकरण और वशीकरण में करें और उच्चाटनादि शेष कर्मों में नपुंसक मंत्रों का प्रयोग करें। ३. आग्नेय और सौम्य की अपेक्षा प्रणव, अग्नि और आकाश बीजों वाले आग्नेय मंत्र कहलाते हैं। दूसरे आचार्य सौर्यबीजों को सौम्य और फट अंत वालों को आग्नेय कहते हैं। आग्नेयों के ही अंत में 'नमः' लगा देने से वह सौम्य हो जाते हैं। मारण, उच्चाटन आदि में आग्नेय मंत्र बतलावें। शांत वशीकरण, पौष्टिक आदि कर्मों में सौम्य मंत्रों को बतलावें। आग्नेय मंत्र के लिए सायंकाल वाम स्वर और जागृत मंत्र कहा है तथा सौम्य के लिए इससे उल्टा लेना चाहिये। ४. प्रबुद्ध व स्वाप की अपेक्षा मंत्रों की दो अवस्थायें होती हैं- स्वाप (सोया हुआ) और बोध (जागता) आग्नेय की स्वाप दशा होती है। बायें बहना प्रबोध या बोध और दायें बहना स्वाप कहलाता है। यह एक दूसरे के विपरीत होते हैं। यदि मंत्र दोनों में बह रहा हो तो दोनों ही भेदों को जानना चाहिये। केवल प्रसुप्त और केवल प्रबुद्ध सिद्ध नहीं होते। ५. मंत्रों का षडङ्गन्यास 73
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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