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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
पुल्लिंगी अक्षर- अ उ ऊ ऐ ओ औ अं ये सात स्वर तथा क ख ग ट ठ ड ढ त थ प फ
ब ज झ ध म ष स और क्ष। इन १९ वर्णों को पुल्लिंगी कहा है। नपुंसकलिंगी- इ ऋ ऋलु ए अ: घ भ य र ह द ञ ण और ङ। ऐसे सात स्वर
व नौ व्यञ्जानों को नपुंसक लिंगी कहा गया है। स्त्री लिंगी- श च छ ल और व इन पांचों को स्त्रीलिंगी कहा है। तथा ई, आ
ये दो स्वर स्त्रीलिंगी हैं।
लिंग ध्यान संकेत अक्षर
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
नपुंसक लिंग अआ इई उ ऊ ऋ ऋ अ उ ऊ
ई आ
इ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओऔ अं अः । ओ औ अं ऐ
ल ल ए अ: क ख ग घ ङ
क ख ग च छ ज झ ञ
च छ ट ठ ड ढ ण
ट ठ ड ढ त थ द ध न
त थ ध
जझ
चठ
प फ
ब भ म
प फ
ब म
ल व
।
य र ल व श ष स ह
ष स
क्ष त्र ज्ञ
१. क प वर्गा तुर्यवर्णा वान्तस्था अक्षर द्वयं शान्ति ॥ पञ्चम वर्ग २. क च वर्गा तुर्यवर्णा वान्तस्था अक्षर द्वयं शान्तं।
३. पञ्चम् वर्ग तृतीयाद्वि ङ ज ण न वान्ते पंडा स्युः। नोट- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र प्रत्येक का एक एक भाग हो तो यह मिलकर
मित्रता रूप से परिणत हो जाता है।
एक ही वर्ग में (सब मंत्र) अभीष्ट फल को नहीं देते। किन्तु एक वर्ग के अक्षर संघात को बचाकर ही फल देते हैं, ऐसा सर्वज्ञ देव ने कहा हैं। लिंग की अपेक्षा
पुल्लिंगाक्षरमित्रत्वं रामा क्षरसमं सदा।
नपुंसक मुदासीनमक्षरं तद्वयोरपि ॥ अर्थ- पुल्लिंग अक्षरों के साथ स्त्रीलिंग अक्षरों की सदा ही मित्रता होती है।
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