SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर धरानिलजवर्णानामन्योन्यमिह सर्वदा। न मित्रत्वं न वैरत्वमौदासीन्यं तु केवलं ॥ अर्थ- जलमण्डली अक्षर और अग्नि अक्षर एक दूसरे के शत्रु हैं। वायु अक्षर और अग्नि मण्डली अक्षर परस्पर मित्र हैं। पृथ्वीमण्डली, जलमण्डली और खबीज भी मित्र होते हैं। परन्तु पृथ्वी अक्षर और वायु अक्षर परस्पर उदासीन होते हैं अर्थात् न शत्रुता होती है न मित्रता। चतुर्वर्णाक्षरों की अपेक्षा एक: शूद्रस्त्रिभिर्विप्रैर्मित्रत्वं प्रतिपद्यते। त्रिभिः शूरैर्द्विजोप्येकस्तथा क्षत्रियवैश्ययोः । एकभागों भवेद्विप्र-स्यैकः क्षत्रियवैश्ययोः । शूद्रस्याप्येकभागश्चेत्संयुक्तो मित्रतां व्रजेत॥ सर्वमंत्रान्त्वैकस्मिन्वर्गोऽभीष्टफलप्रदा। विमुच्याक्षरसंघातमिति सर्वज्ञभाषितं ॥ अर्थ- एक शूद्र की तीन ब्राह्मणों के साथ, तीनों शूद्रों की एक ब्राह्मण के साथ तथा क्षत्रिय और वैश्य की परस्पर मित्रता नहीं होती। लिंग की अपेक्षा सप्तकला: पुल्लिंगाः नपुंसकास्तत्र संति सप्तकलाः । द्वे च कले स्त्री ज्ञेये कलासु मध्ये तु षोड़शेषु ॥ आदिमपंचमषष्ठद्वादशमुख पंच दशकपर्यताः । पुल्लिंगाः स्त्रीलिंगौ द्वितीयतूर्यस्वरौ स्यातां ॥ सप्तक लादिरु द्र प्रमाणपर्यंत सकलां तकलः । त्रिकलापि सप्त षष्ठा इत्युदिता मंत्रवादेत्र ॥ क वर्गाद्य त्रयो वर्णाष्टवर्गाद्यचतुर्थकाः। तवर्गाद्य द्विवर्णौ च पवर्गाद्य त्रयोपि च ॥ क्षः कूटाक्षरेणैते सर्वे मिलितैकोनविंशतिः । पुल्लिंगसंज्ञिनो वर्णा: मंत्रव्याकरणे मताः ॥ उष्मणादिमो वर्णश्च वर्गाद्यक्षरद्वयं । पवर्गांत्यद्विणौ च स्त्रीणां पंचाक्षराणि वै ॥ कपवर्गा तुर्य्यवर्णावंतस्था अक्षरद्वयं शांतं । पंचमवर्गतृतीयो ज टु ज ण नवास्तु च षंढाः स्युः ॥ अर्थ- सोलह कलाओं में सात पुल्लिंग, सात नपुंसक लिंग और दो स्त्री लिंग वाली हैं। 71
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy