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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
कवर्ग
रक्त
अनि
शूद्र
कृष्ण
कृष्ण
शवर्ग
अर्थ- स्वर ब्राह्मण वर्ग श्वेत
जलमण्डली क्षत्रिय चवर्ग वैश्य
पीत
क्षिति टवर्ग
वायु तवर्ग शूद्र
वायु पवर्ग वैश्य
पीत
क्षिति यवर्ग क्षत्रिय
रक्त
अग्नि ब्राह्मण श्वेत
जल नोट- मंत्र व्याकरण के अनुसार ई ऊ ल ल का रंग पीत व जल मण्डली है। 'ष' का पीत रंग व आकाश मण्डली कहा है। तिथि-वार व गति की अपेक्षा
प्रतिपन्नवमी रवि शनिवासरे द्विजसिद्विरथ चतुर्थ्या च। द्वादश्ये कादश्योः सितवारे भूपसिद्धिः स्यात् । कुजवारे पंचम्यां षष्ठयां च चतुर्दशी-त्रयोदश्योः । वैश्याक्षरसंसिद्धिः संभनकर्मात्र कर्त्तव्यं । वहिन्स्तंभन शांतिक पौष्टिककर्माणि कृत्यानि । लक्ष योजन गा विप्रास्त दर्द्धगतयो नृपाः ।
तदर्द्ध गामिनो वैश्या शूद्रास्तद्दल यायिनः ।
अर्थ- विशिष्ट ब्राह्मणादि वर्ण की सिद्धि की तिथि, वार व उसकी गति की तालिका निम्न प्रकार हैं। अक्षर तिथि
वार
गति ब्राह्मण प्रतिपदा, नवमी रवि,शनि एक लाख योजन कार्य क्षत्रिय ११,१२,४
पचास हजार योजन कार्य वैश्य ५,६,१३,१४ मंगलवार पच्चीस हजार योजन कार्य स्तम्भन
सोमवार
शूद्र पर्व के दिन १४ गुरुवार १२ १/२ हजार योजन कार्य पौष्टिक आदि तथा ७ को
अक्षरों की शत्रु-मित्रता मण्डलों की अपेक्षा
अप्पाक्षरमग्न्याक्षरमरयो मरुदग्निबीजमपि मित्रं । भूम्यक्षरमाप्याक्षरमुभे च मित्रत्वं बीजं च॥