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________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर पण्डित पुरुष हृदय में 'नमः', मस्तक में 'स्वाहा', चोटी अर्थात शिखा स्थान में वषट् कवच में 'ॐ' और नेत्रों में क्रम से संवौषट् और फट् लगावें । जिस मंत्र के पृथक् अंग भेदों का वर्णन न हो बुद्धिमानी से ही उनकी कल्पना कर लें। एक मंत्र का षडङ्ग न्यास होता है । उस न्यास में पांच अंग का उपदेश भी किया जाता है। पंचांग मंत्र का नेत्र सहित अनुष्ठान करें । ६. ॐ पंचपरमेष्ठी का वाचक है ओंकार पंचपरमेष्ठी का द्योतक है। यह अरहंत, अशरीर (सिद्ध), आचार्य, उपाध्याय और मुनि का प्रथम अक्षर अ+ अ + आ + उ +म्- लेकर बनाया गया है। ७. मंत्रों के दस कर्म १. शान्ति - जिस मंत्र से रोग, ग्रह पीड़ा, उपसर्ग शान्ति व भयशमन हो उसे शान्ति कर्म कहते हैं । २. स्तंभन - जिस मन्त्र के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीवों की गति, हलनचलन का निरोध हो, उसे स्तंभन कर्म कहते हैं । ३. मोहन- जिस मन्त्र के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी मोहित हों, उसे मोहन या सम्मोहन कहते हैं । मेस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म आदि प्रायः इसी के अंग है । ४. उच्चाटन - जिस मन्त्र के प्रयोग से मनुष्य, पशु-पक्षी अपने स्थान से भ्रष्ट हो, इज्जत, मान-सम्मान खो दें उसे उच्चाटन कर्म कहते हैं। I ५. वशीकरण - जिस मंत्र के प्रयोग से अन्य व्यक्ति या प्राणी को वश में किया जा सके फिर साधक जो जैसा कहें सामने वाला या प्राणी वह वैसा करें उसे वश्यकर्म कहते हैं। ६. आकर्षण - जिस मंत्र के द्वारा दूर रहने वाला मनुष्य, पशु-पक्षी आदि अपनी तरफ आकर्षित हों, अपने निकट आ जायें, उसे आकर्षण कर्म कहते हैं । ७. जृंभण- जिस मन्त्र के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी प्रयोग करने वाले की सूचनानुसार कार्य करें उसे जृंभण कर्म कहते हैं । ८. विद्वेषण - जिस मन्त्र के द्वारा दो मित्रों के बीच फूट पड़े, संबंध टूट जाये उसे विद्वेषण कर्म कहते हैं । ९. मारण - जिस मन्त्र के द्वारा अन्य जीवों की मृत्यु हो जाय उसे मारण कर्म कहते हैं 1 १०. पौष्टिक - जिस मन्त्र के द्वारा धन, धान्य, सौभाग्य, यश व कीर्ति आदि में वृद्धि हो उसे पौष्टिक कर्म कहते हैं । 74
SR No.009370
Book TitleMantra Yantra aur Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L020
File Size1 MB
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