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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
अर्थ- घर में मंत्राराधना करने से एक गुणा फल, वन में सौ गुना, नसिया एवं वन में हजार गुना, पर्वत पर बैठकर १० हजार गुना, नदी के किनारे लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना जिनेन्द्र देव के सामने अनंत गुना फल मिलता है।
जाप का फल कब नहीं मिलता जो श्रावक जप करते समय प्रमादी होकर ऊंघते हैं, नींद का झोंका लेते हैं अथवा बार-बार उबासी लेते हैं या किसी प्रकार का प्रमाद करते हैं उनका जाप करना न करने के समान है और जो कोई अपने हृदय में उद्वेग व चंचलता रखता हुआ जप करता है अथवा माला के मेरुदंड को उल्लंघन कर जप करता है अथवा जो उंगली के नख के अग्रभाग से जप करता है उसका वह सब जप निष्फल होता है। लिखा भी है व्यग्रचिन्तेन यज्जप्तं-२ मरुलंघने। नरवाग्रेण च यज्जप्तं तज्जप्तं निष्फलं भवेत्।
जाप करने का विधान मोक्ष प्राप्ति के लिए अंगूठे से जपना चाहिये, औपचारिक कार्यों में तर्जनी से, धन और सुख की प्राप्ति के लिये मध्यमा से, शान्ति कार्यों के लिये अनामिका ऊंगली से, आव्हानन के लिये कनिष्ठा से शत्रु ,नाश के लिये तर्जनी से, धन संपदा के लिये मध्यमा से, सर्व कार्य की सिद्धि के लिये कनिष्ठा से जाप करना चाहिये एवं अंगूठे पर माला रखना चाहिये।
मंत्र साधना के निर्देश १. मंत्र-साधना के लिए स्थान पवित्र, शुद्ध, स्वच्छ, शान्त, एकान्त, आवाज रहित होना
चाहिए। २. जिस स्थान पर बैठकर मंत्र साधना करना है, उस स्थान के रक्षक देवी देवताओं से
पहले अनुमति लेकर ही वहाँ बैठना चाहिए। ३. मंत्र साधना के लिए आवश्यक सामग्री पास रखना चाहिए एवं किसी एक योग्य
विश्वास पात्र व्यक्ति को अपने पास बैठाना चाहिए। ४. मंत्र-साधना के समय तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए एवं भूमि
शयन करना चाहिए तथा सात्विक, अल्प, शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। ५. मंत्र साधना के दिनों में कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि) का
त्याग कर अच्छे विचारों को मन में लाकर प्रसन्न रहना चाहिए। जहां तक बन सके
तो मौन रहना चाहिए। ६. मंत्र के जाप की जितनी संख्या निश्चित है, उतना संकल्प लेकर विधि पूर्वक करना
चाहिए। जाप का संकल्प अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और न ही मंत्र के जाप के
समय का परिवर्तन करना चाहिए। ७. मंत्र साधना के पहले रोज सकलीकमा अवश्य करना चाहिए।