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मंत्र अधिकार
मंत्र यंत्र और तंत्र
मुनि प्रार्थना सागर
मन्त्राक्षरों की बार बार आवृत्ति करना, पुनरावृत्ति करना, रटना जप कहलाता है। इस प्रकार 'जप' स्मरण का एक विशिष्ट विस्तृत स्वरूप है। परन्तु यह अपनी विशेषता रखता है। मन्त्रविदों ने इसे निम्न प्रकार कहा है।
ज करो जन्मविच्छेदः प करो पाप नाशकः।
तस्माज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः। अर्थात्- 'ज' कार जन्म का विच्छेद करने वाला है। और 'प' कार पाप नाशक कहा है। अतः जप यथाविधि हो तो सिद्धि के लिए कोई शंका नहीं रहती। आचार्यों ने कहा है कि जप तीन प्रकार से किया जाता है१. मानस जप : जिस जप में मन्त्र के पद, शब्द और अर्थ का मन द्वारा बार-बार चिन्तन
होता है उसे मानस जप कहते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ प्रकार की जप है। २. उपांशु जप : जिस जप में केवल जिह्वा हिलती है या इतने हलके स्वर से जप होता
है जिसे कोई सुन न सके, मात्र ओंठ ही हिलते नजर आयें, तो उसे उपांश जप कहते
हैं यह मध्यम प्रकार की जप है। ३. वाचिक जप : जप करने वाले ऊंचे-नीचे स्वर से स्पष्ट या अस्पष्ट मन्त्र बोलकर जप
करता है। उसे वाचिक जप कहते हैं। लेकिन यह जघन्य प्रकार की जप है।
मन्त्र विशारद वाचिक जप से एक गुना फल, उपांशु जप से सौ गुना फल तथा मानस जप से हजार गुना फल बताते हैं।
त्रियोग जाप का फल १. मानसिक जाप- कार्य सिद्धि के लिये मन में करना। २. वाचनिक जाप- पुत्र प्राप्ति के लिये उच्च स्वर से जाप करना। ३. कायिक जाप- धन प्राप्ति के लिये, बिना बोले मंत्र पढ़ना जिससे ओंठ हिलते रहें।
जाप एवं हवन में मंत्र का प्रयोगजप काले नमः शब्दों, मंत्रस्यान्ते प्रयोजयेत्। होम काले पुनः स्वाहा, मंत्रस्यायं सदाक्रमः ॥
जप स्थान का फल गृहे जपफलं प्रोक्तं बने शतगुणं भवेत् । पुष्यारापे तथा रण्ये सहस्रं गुणितं मतम् ॥ पर्वते दशसहस्रं च नद्यां लक्षमुदाहतं ॥ कोटी देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधौ ॥
विद्या १२ गो. प्र. चित्रा ८५५
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